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॥ वन्दे श्रीवर्द्धमानजिनेश्वरम् ॥
अनन्तलब्धिनिधानाय श्रीगौतमस्वामिने नमः । | "श्रीगच्छाचार-पयन्ना")
श्रीविजयविमलगणिविरचित टीकाना आधारे] जैनाचार्य - श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरकृत -
सरल अने रोचक विवेचन युक्त विवेचन - कर्ता- मंगलाचरण
समस्तवस्तुपर्याय - स्तोमसत्यप्रकाशकः ।। निर्मोही शिवनारीशो, वीरोऽस्तु ज्ञानदो मम ॥१॥
गच्छाचारप्रकीर्णस्य, टीकां लोकसुभाषया ।
- कुर्वे वृत्त्यनुसारेण, चाऽधिकां कुत्रचित्त्वपि ॥ २ ॥ श्लोकार्थ - सकल पदार्थोना पर्यायसमूहने सत्य स्वरूपे प्रकाशित करनार, मोह रहित, शिववधू-मोक्षरूपी स्त्रीना स्वामी श्रीवीरजिनेश्वर परमात्मा मने ज्ञानदाता थाओ. गच्छाचारप्रकीर्णकनी टीकाना आधारे लोकभाषा-गुजराती भाषामां हुं अनुवाद - विवेचन करूं छु आ अनुवादने मनोगम्य तथा सरल बनाववा माटे टीकाना उल्लेख करतां पण प्रसंगोचित विशेष विवेचन कर्यु छे.
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अनन्तलब्धिनिधान श्रीगौतमस्वामी गणधरमहाराजे एकदा चोत्रीश अतिशयधारी, वाणीना पांत्रीश गुणोथी विभूषित श्रीवर्द्धमानस्वामीने सुविहित गच्छसंबंधी पृच्छा करी, एटले दयानिधि, अनंतज्ञानी श्रीवीर भगवंते भव्य प्राणीओने संसारसागरनो पार पमाड़वामां नौका-जहाज समान, जन्ममरणरूपी दुःखदावानळने प्रशांत करवामां मेघधारा समान चारित्रधर्मनी प्ररुपणा करीने “गच्छाचारपयन्ना" प्रमाणे सुविहित गच्छ, स्वरूप कही संभळाव्युं. ते गच्छाचारपयन्ना स्वपरोपकारक समजी, अथवा आवा अनुपम ग्रंथनो सर्वसामान्य जनसमूह पण लाभ लई शके ते माटे लोकप्रिय गुजराती भाषामां तेनुं विवेचन करवानों में यथाशक्ति प्रयास कर्यों छे. मंगलादिनी आवश्यकता - __ कोई पण ग्रंथनी शरूआत करतां प्रथम मंगल, अर्थसंबंध, नाम अने प्रयोजन ए चार हेतओ दर्शाववा जोईए. आना संबंधमां कोई एवी शंका करे के – ‘मंगळ करवानुं कारण शुं?' तेनो उत्तर एछे के-'विघ्नोनी उपशांतिने माटे मंगळ करवू जोइए, मंगळ करवाथी विघ्नपरंपरा विनाश
श्रीगच्छाचार-पयन्ना-१