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सधूम, कारण विना भोजन करे- आनुं प्रायश्चित उपवासथी आयंबिल पर्यंत जाणवुं तेनाथी ओछा दोषवाळा-अध्यवपूरकना छेल्ला वे भेद, कृतकना चारे भेदो, भक्तपानपूर्तिक, मायापिंड, अनंतकायव्यवहित, निक्षिप्त, पिहित विगेरे आनुं आयंबिलथी एकासण पर्यन्त प्रायश्चित जाणवु. तेनाथी ओछा दोषवाला - औदेशिक उद्दिष्टना चार भेद, उपकरणपूतिका, घणा काळनी स्थापनानुं प्रकटकरण, लोकोत्तर परावर्तित, अप्रामित्य, परभावक्रीत, पोताना गामथी सामे लावेल आहार, दर्दरोद्भिन्ने, जघन्यमालापहृत, प्रथम अध्यवपूरक, सूक्ष्मचिकित्सा, गुणसंस्तवकरण, मिश्रकर्दम, लवण तथा खडीथी प्रक्षित, अल्प दायक दोष, प्रत्येक वनस्पतिमां परंपर रहेल, मिश्रमा अंतर रहेल-आनुं प्रायश्चित्त एकासणाथी पुरिमड्ड पर्यन्त जाणवुं, तेनाथी ओछा दोष वाळा- चार प्रकार स्थापना, सूक्ष्मप्राभृतिका, स्निग्घ सहजम्रक्षित, प्रत्येक मिश्रमा परंपर रहेल-आनुं प्रायश्चित्त पुरिमड्डी विगयना त्याग पर्यन्त जाणवुं. हजु पण आचार्यना गुणो दर्शावतां कहे छे के
अप्परिस्सावी सम्पं, समपासी चेव होइ कज्जेसु ।
सो रक्खड़ चक्खुं पिव, सबालवुड्ढाउलं गच्छम् ।। २२ ।।
[ अपरिश्रावी सम्यक्, समदर्शी चैव भवति कार्येषु । सरक्षति चक्षुरिव, सबालवृद्धाकुलं गच्छम् ॥ २२ ॥ ]
गाथार्थ - अन्यनी गुह्य वातने प्रकाशित न करनार तेमज आगम व्याख्यानादिक सर्व कार्योमां समदृष्टि राखनार आचार्यमहाराज, जेम चक्षु खाडादिकमां पडतां जीवोने बचावी शके छे तेम बाळ तथा वृद्ध साधुओथी युक्त गच्छने दुर्गतिरूपी खाडामां पडतां राखी शके छे.
विवेचन - जेवी रीते पोतानुं गुह्य कोई कहे नहीं तेम बीजाए कहेल रहस्य प्रकाशित न करे. जेवी रीते जलना द्रहनी चतुर्भंगी श्रीआचारांग सूत्रमां कही छे तेना त्रीजा भंग तुल्य आचार्य भगवंत जाणवा. ते चतुर्भंगी आ प्रमाणे समजवी - १. शीता - शीतोदानो द्रह जेमां पाणी आवे छे अने पाणी बहार वहे पण छे, जेथी नदी नीकळे छे. २. पद्मद्रह जेमां नवीन पाणी आवतुं नथी पण बहार नीकळे छे. ३. लवणसमुद्र के जेमां पाणी आवे छे परंतु बहार नीकळतुं नथी अने ४. मनुष्य लोकनी बहार रहेल समुद्रो के जेमां बहारथी पाणी आवतुं पण नथी अने तेमां रहेल पाणी बहार जतुं पण नथी. आ चतुर्भंगी आचार्य आश्रयीने आ रीते घटावी शकाय. १ सूत्रने आश्रयीने प्रथम भंग सरखा कारण के पोते श्रुत भणे अने बीजाने पण भणावे. २. कषायनी अपेक्षाए बीजा भंग तुल्य कारण के कषायनो उदय न होय त्यारे कर्मग्रहणनो अभाव होय छे अने कायोत्सर्गादिक तपश्चर्याथी कर्मनो क्षय करे छे. ३. आलोचनानी अपेक्षाए त्रीजा भांगा सरखा कारण के पोते आलोचना जाणे छे परंतु बीजाने जणावता नथी तेमज ४. कुमार्गने आश्रयीने चोथा भंग सरखा केम के तेमने कुमार्गमां जवानो अने निकळवानो अभाव ज छे. केवळ सूत्रने आश्रयीने पण चार भांगा घटावी शकाय. १. स्थविरकल्पी. . २. तीर्थंकर भगवंतो. ३. यथालन्दिक (जेओने कोई वातनो निर्णय न थयो होय तो आचार्यादिकने पूछीने निर्णय करे ते) अने ४ प्रत्येकबुद्ध- तेमने कोईने कांई कहेवुं पण नथी (उपदेश आपवो नथी) अने कोईने कांई पूछवापणुं पण नथी. वळी सारा आचार्य सर्व कार्योंने विषे यथास्थित देखनारा
श्रीगच्छाचार - पयन्ना- ११९