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सामायिकमां बेठेल रुद्रसोमा तो पोताना एक ध्यानमां जलयलीन रही. आर्यरक्षितने माताना आवा वर्तनथी कंईक खेद उपज्यो. तेने विचार थयो के - मारा पांडित्यने कारणे राजाए अने पौरजनोए मारो सविशेष आदर सत्कार कर्यो त्यारे माता मारा माटे पोताना मुखमांथी आशीर्वादनो एक अक्षर सरखो पण उच्चारती नथी. तेने खबर न हती के सामायिक एटले सावध व्यापारनो त्याग. एक मात्र धर्मध्यान सिवाय तेमां व्यवहारोपयोगी कार्यनो निषेध होय छे. सामायिक पूर्ण थवा बाद योग्य समये आर्यरक्षिते माताने हर्ष नहीं थवानु कारण पूछ्युं.
रुद्रसोमाए जाण्यु के पुत्रने सन्मार्गे चढाववानो आ उचित समय छे एटले नम्र वाणीमां का के – “पुत्र ! दुर्गतिदायक तारा अभ्यासथी के पांडित्यथी हुं शी रीते संतुष्ट थाउं?" माताना आ वचनो सांभळतां ज आर्यरक्षित चमक्यो. तेने माताना कथनमां कंई ऊंडो मर्म समजायो.
विशेष पृच्छा करतां रुद्रसोमाए का के–“पुत्र ! आ भौतिक ज्ञान तने बहुमान अपावशे, तारी कीर्ति फेलावशे परंतु साचुं ज्ञान तो ते ज छे के जे आत्मानी उन्नति करे. आत्माने सन्मार्गना पंथे वाळे, जैनदर्शनना अभ्यास विना तारुं ज्ञान अपूर्ण ज रहेवानं. जेम जळ विनानं सरोवर शोभे नहीं तेम दृष्टिवाद विनानुं तारुं ज्ञान शोभशे नहीं." दृष्टिवाद ए शुं कहेवाय तेम पूछसां माताए का के–“आपणा नगरने विषे तोसलीपुत्र नामना जैनाचार्य छे, तेनी पासे जजे अने ते तने सर्व वस्तु समजावशे.” “प्रात:काळे जईश” एम कहीने मातानो आदेश आर्यरक्षिते मस्तके चढाव्यो. ___माता साथेना वार्तालाप पछी आर्यरक्षितनुं मन चकडोळे चढ्यु. तेणे विचार्यु के–“आटला वर्षोनी विद्याप्राप्ति माटेनो परिश्रम मातानी दृष्टिए तो वृथा ज नीवड्यो. कई माता पोताना पुत्रना हितने माटे उत्कंठित न होय? खरेखर माताए मने सन्मार्गे लाववाज आ प्रयास कर्यो छे, कारण के माता कडवू ओषध बाळकने पीवडावे छे ते तेना स्वास्थ्यने माटे ज. माताए जणावेल तोसलिपुत्र आचार्य पासे जवू अने तेनी पासे अवश्य अभ्यास करवो. पण तोसलिपुत्र पासे केवी रीते जवू? केम बोलवू? जैनाचार्यनां शुं आचार-विचारो ने विधिप्रणालिका हशे?" आ प्रमाणे विचार-मंथनमां ज तेणे अर्धी रात्रि व्यतीत करी अने ते ज विचारमा तेने निद्रा पण आवी गई. प्रात:विधि आटोपी लईने जेवामां गृहमांथी बहार निकळे छे तेवामां पोताना मित्रनो मित्र शेरडीना साडानव सांठा लईने सामो मळ्यो. आ शुभ शुकन थया जाणी आर्यरक्षित आगळ वध्यो अने उपाश्रय पासे आवी पहोंच्यो. केवी रीते ऊपर जवू अने शुं करवू? तेनो विचार करे छे तेवामां ढढ्डर नामनो श्रावक गुरुने वंदन निमित्ते आव्यो अने तेनी पाछळ-पाछळ आर्यरक्षित पण गयो.
ढढ्डरनी माफक तेणे पण तोसलीपुत्र आचार्यने वंदन कर्यु, नवो आगंतुक जाणी आचार्ये तेने तेनुं नाम, गोत्र अने कुळ संबंधी पृच्छा करतां जणायुं के राजाए जेनो बहुमानपुरस्सर नगर-प्रवेश कराव्यो हतो ते ज आ पुरोहित पुत्र आर्यरक्षित छे. बाद तेना आगमन- कारण पूछतां आर्यरक्षिते माता साथेनो संपूर्ण वार्तालाप कही संभळावी दृष्टिवाद भणाववा माटे प्रार्थना करी. तोसलीपुत्र आचार्ये पण आ सांभळी ज्ञानोपयोग दीधो. ज्ञानदृष्टि द्वारा तेमने जणायुं के श्रीवज्रस्वामी पछी
श्रीगच्छाचार-पयन्ना-८९