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तीसरा अध्ययन : शीतोष्णीय
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मूलसूत्रम्से आयवं णायवं वेयवं धम्मवं बंभवं पण्णाणेहिं परियाणइ लोयं, मुणीतिवच्चे, धम्मविऊत्ति अंजू आवट्टसोए संगमभिजाणाइ। पद्यमय भावानुवाद
•छन्द-घनाक्षरी. आत्मवान ज्ञानवान, वेदवान धर्मवान, ब्रह्मवान महामुनि, मतिज्ञान धारी जो। सर्वलोक ज्ञाता द्रष्टा, अहो! वही मुनियोग्य, सरल स्वभाव भाव, उपमानवारी जो।।१।। मन का भ्रमण द्वार, भोग संग क्षय करे, आवृत स्तोत्र अर्थ, सूक्ष्म सविचारी जो। आचार्य 'सुशील' अहो! आगम रहस्य गूढ़, रहा विज्ञ आम्नाय, विनय भावधारी जो।।२।।
निर्ग्रन्थ दशा. मूलसूत्रम्सीउसिणच्चाई से णिग्गंथे अरइरइसहे, फरूसयं णो वेएइ, जागरवेरोवरए, वीरे एवं दुक्खा पमुक्खसि, जरामच्चुवसो वणीए णरे सययं मूढे धम्मं णाभिजाणइ। पद्यमय भावानुवाद
शीत-उष्ण परिषह सहन, संयम रति का ख्याल। अहो! धन्य निर्ग्रन्थ यह, कर लेता जय काल।।१।। सदैव जाग्रत मुनि कहा, निवृत्त वैर विकार। अहो! दुःखों से मुक्त हो, साधक इसी प्रकार।।२।। वह मनुष्य अति मूढ़ है, रहता धर्मविहीन। निश्चय ही वह होयगा, जरा-मृत्यु आधीन।।३।।