________________
दूसरा अध्ययन : लोक विजय
-.
-.
-.
-.
-.
-
.
-
.
-.
• आर्यदर्शी. मूलसूत्रम्समुट्ठिए अणगारे आरिए आरियपण्णे आरियदंसी अयं संधिति अदक्खु। से णाईए णाइयावए न समणुजाणइ। सव्वामगंधं परिण्णाइ णिरामगंधो परिव्वए। पद्यमय भावानुवाद- -
निर्मल मति है आर्य नर, संयम-पथी उदार। आर्यदर्शी साधु वह, लखै सत्य उर धार।।१।। उद्यम संयम पंथ में, रहे आर्य अनगार। आर्यदर्शी आर्यमति, कार्य समय अनुसार ।।२।। अहो श्रमण! परमार्थ तू, अन्तर मन अवलोक। मुनि ‘सुशील' तू सहज ही, पा जाये भव रोक।।३।। तन से मन से वचन से, तीन करण रख संग। कल्पनीय नहिं वस्तु जो, त्याग-त्याग मुनिरंग।।४।। आमगंध आहार जो, अथवा होइ अशुद्ध । जिसमें हो आसक्ति नहिं, वही अशन है शुद्ध ।।५।। प्रत्याख्यान परिज्ञा से, मुनिजन करना त्याग। विशुद्धाहार ग्रहण कर, विचरित भाव विराग।।६।।
• निदान-निषेध. मूलसूत्रम्अदिस्समाणे कयविक्कएसु, से ण किणे ण किणाव ए किणंतं ण समणुजाणइ, से भिक्खू कालण्णे बलण्णे मायण्णे खेयण्णे खणयण्णे विणयण्णे ससमयण्णे परसमयण्णे भावण्णे, परिग्गहं अममायमाणे कालाणुट्ठाई अपडिण्णे।