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भोगासक्ति का भँवर जाल विविध प्रकार के भोगों में आसक्त मनुष्य मणि, सोना, रत्न, स्त्री, पुत्र-पुत्री और समस्त परिवार, दास-दासी, गृह-सेवक, पलंग, आसन, वाहन, वस्त्र, गंध, माला, भवन आदि पर ममत्व रखता है। यह एक प्रकार से आसक्ति का भंवर है। __जब कभी उसके शरीर में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं तब, जिनके लिए धन संग्रह किया वे स्वजन ही उससे मुँह फेर लेते हैं। वे असहाय छोड़ देते हैं। __परिवार, मित्र, वैद्य आदि भी रोगों से या मृत्यु से उसकी रक्षा करने में समर्थ नहीं होते। अतः जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं-तुम जानो प्रत्येक व्यक्ति का दुःख अपना ही होता है। दूसरा उसे कोई नहीं बाँट सकता।