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समर्पण
आआचाराग सूत्रम्
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वन्दन है अभिनन्दन प्रतिपल, जिनवर ! गुरुवर ! कृपानिधान। बलिहारी गुरुचरण-शरण का, जिनपथ-दर्शन-ज्योति महान।। उपकत है तन, मन, विद्या-धन, संयम की चादर सुकुमार। 'गुरु सुशील' की परम कृपा से, उनको अर्पित यह उपहार
उनक
चरण चञ्चरीक विजय जिनोत्तम सूरि.R