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दूसरा अध्ययन : लोक विजय
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पद्यमय भावानुवाद
मानव धन-उपभोग कर, संचित करता शेष। करे परिग्रह भावना, जोड़े द्रव्य हमेश।।१।। पुत्र-पौत्र लेंगे इसे, जोड़े धन-भण्डार। मैं भी लूँगा काम में, भोगूं सुख-संसार ।।२।। कौड़ी-कौड़ी जोड़कर, काहे होत प्रसन्न। घेरा डाले रोग रिपु, होगी काया छिन्न।।३।।
• कर्म सत्ता प्रभाव. मूलसूत्रम्
जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं। पद्यमय भावानुवाद
अपना-अपना भोगना, नहीं किसी का साथ। चाहे सुख या दुक्ख हो, चाहे बालक नाथ।।१।। निश्चित होगी कर्म की, सत्ता तुझे लखाय। कर्मदशा भोगे बिना, नहिं छुटकारा पाय।।२।। रे चेतन! चिन्तन करो, जब आते हैं भोग। भोग कर्म सम भाव से, यही 'कर्म' का 'योग'।।३।।
.आत्महित साधना. मूलसूत्रम्
अणभिक्कतं च खलु वयं संपेहाए। पद्यमय भावानुवाद
रे! रे! जीवन जा रहा, जैसे पवन प्रचार। हित-चिंतन में ध्यान दे, नश्वर देह विचार।।१।। होइ विवेकी नर वही, चाहे निज कल्याण। आत्मार्थी बनकर रहे, ज्यों आज्ञा भगवान।।२।।