SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूसरा अध्ययन : लोक विजय *३९ * - . -. -. - - - -. नाक-कान अरु जीभ है, आँख त्वचा लो जान। पाँच इन्द्रियो के विषय, छोड़ जीव नादान।।३।। अरे देख निश्चय कथन, उम्र जा रही बीत। होगा चिन्ताग्रस्त तू, पहले सोचो मीत।।४।। .अशरण बोध. मूलसूत्रम् णालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा। पद्यमय भावानुवाद नहीं शरण संसार में, रक्षा को परिवार । तू भी तो असमर्थ है, क्यों नहिं करे विचार।। • वृद्धावस्था बोध. मूलसूत्रम् से ण हासाए, ण किड्डाए, ण रइए, ण विभूसाए। पद्यमय भावानुवाद अरे मूढ़ जब वृद्ध हो, जर्जर बने शरीर। इन्द्रिय तेरी शिथिल हों, बिगड़ेगी तसवीर।। •संयम हितोपदेश. मूलसूत्रम्इच्चेवं समुट्ठिए अहोविहाराए। अंतरं च खलु इमं संपेहाए धीरे मुहत्तमवि णो पमायए वओ अच्चेइ जोव्वणं च। पद्यमय भावानुवाद धर्म-शरण सख दान दे, इसी भाव को धार। उद्यत हो कल्याण-हित, संयम-पथ स्वीकार ।।१।। मानव-जीवन धन्य है, जीवन का यह ध्येय। कर संयम की धारणा, यही है तेरा श्रेय।।२।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy