________________
*३२ *
श्री आचारांगसूत्रम्
पद्यमय भावानुवाद
रे! रे ! हिंसा जगत् में, परपीड़न अन्याय। बोधिविरोधक जान तू, सूरि 'सुशील' बताय।।
• हिंसा ही नरक है. मूलसूत्रम्से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अणगाराणं वा इहमेगेसिं। णायं भवइ, एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरहे। इच्चत्थं गढिए लोए। पद्यमय भावानुवाद
रे! रे! चेतन समझ तू, हिंसा का परिणाम। संयम में दृढ़ता करे, लेकर समकित दाम।।१।। भगवान या मुरािज से, श्रुत सम्यक् उपदेश। विरले नर को ज्ञात हो, निश्चय हिंसा क्लेश।।२।। यह हिंसा बन्धन अरे, यही मोह अरु मार। यही नरक प्रत्यक्ष में, सूरि 'सुशील' विचार।।३।।
• सुरव इच्छुक. मूलसूत्रम्
इच्चत्थं गढिए लोए। पद्यमय भावानुवाद
अभिलाषी जो सौख्य का, मूर्छित विषयों माँय। करता हिंसा मनुज वह, दारुण दुख प्रकटाय।।
• अव्यक्त प्राणानुमूति. मूलसूत्रम्
___ अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। पद्यमय भावानुवाद
अंध-वधिर इन्द्रिय विकल, मूक पंग महिकाय। उनको अनुभव कष्ट हो, अव्यक्त चेतनराय।।१।।