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भूमिका
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पूर्वापर अविरोधमय, जिनवाणी जयवन्त । सर्वज्ञ ईश की देशना, गूँथें गणधर सन्त ।।२१२ ।।
प्रथम आगम वाचना
वर्द्धमान निर्वाण से, दो सौ वर्षों बाद । भारत भू दुष्काल हो, द्वादश वर्ष विषाद ।। २१३ ।। छिन्न-भिन्न मुनि संघ था, बहुश्रुत मुनि अवसान । जैनागम विस्मृत हुए, किंचित् प्रज्ञावान । । २१४।। नगर पाटलिपुत्र में, मुनि सम्मेलन होय । अंग संकलन कर लिए, याद जिन्हें था जोय । । २१५ । । द्वितीय आगम वाचना
खारवेल नरराज थे, शासन- भक्त उदार । करवाया मुनि संघ से, जिन आगम उद्धार । । २१६ । । प्रान्त उड़ीसा मध्य में, शैलकुमारी स्थान । श्रमणसंघ एकत्र तब, जिन आगम उत्थान । । २१७ । ।
तृतीय आगम वाचना
श्री स्कन्दिल मुनिराज थे, था शासन दुष्काल । अतिशायी श्रुत नष्ट हो, श्रमणसंघ बेहाल । । २१८ । । बीत गया दुर्भिक्ष जब, मथुरा नगरी मध्य | सूत्र संकलन मुनि करें, नव-नव खोजे कथ्य । । २१९।। चतुर्थ आगम वाचना
नागार्जुन आचार्य थे, बना वाचना योग । वल्लभीपुर सौराष्ट्र में, मुनियों का संयोग ।। २२० ।। जो-जो स्मरण था उन्हें, गुंफित किया तमाम । रक्षण जैनागम हुआ, था अनुपम परिणाम । । २२१ । ।