________________
नवाँ अध्ययन : उपधान श्रुत
* १३३ *
मूलसूत्रम्
णो चेविमेण वत्थेण पिहिस्सामि तंसि हेमंते।
से पारए आवकहाए एयं खु अणुधम्मियं तस्स।। पद्यमय भावानुवाद
कंधे पर शाटक पड़ा, ली जब दीक्षा वीर। अनासक्त निर्लिप्त प्रभु, वीर-धीर-गम्भीर।।१।। शीतकाल हेमंत ऋतु, करूँ न पट उपयोग। ऐसा प्रण प्रभु ने किया, त्यागे लघुतम भोग।।२।। जीवनभर का प्रण अटल, सहनशक्ति अनमोल। अनुधर्मिता वीर की, कष्टों रहे अडोल।।३।।
• श्री महावीर प्रभु-उपसर्ग. मूलसूत्रम्
चत्तारि साहिए मासे बहवे पाणजाइया आगम्म।
अभिरुज्झ कायं विहरिंसु आरुसियाणं तत्थ हिंसिंसु।। पद्यमय भावानुवाद
संयम-धारण के समय, दिव्यगंध तन वीर। देह गंध लिपटें भ्रमर, देते तन को पीर।।१।।
•छन्द कुंडलिया. महावीर भगवान जब, किय संयम स्वीकार। भ्रमरादिक उपसर्ग तब, हुए मास तक चार।। हुए मास तक चार, देह अलि इत-उत चढ़ते। करें अचानक दंश, महामुनि समता सहते।। दौड़े असि की धार, भ्रमर दंश जिनेश सहा। ज्ञात पुत्र भगवान हैं, जगत् में वीर महा।।२।।