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________________ आठवाँ अध्ययन : पद्यमय भावानुवाद मूलसूत्रम् - विमोक्ष मूलसूत्रम् - जब तक यह जीवन रहे, तब तक संकट होय । देह भेद का ज्ञान कर, मेरापन ले खोय ।। • क्षणभंगुर भोग • पद्यमय भावानुवाद भेउरेसु ण रज्जिज्जा, कामेसु बहुयरे सुवि। मूलसूत्रम् - कामभोग संसार के, निश्चय नश्वर पात । चाहे पाये बहुत से, मूच्छित हो मत भ्रात ।। • देव - आग्रह • सासएहिं णिमंतिज्जा, दिव्वमायं ण सद्दहे । तं पडिबुज्ज माहणे, सव्वं णूमं विहूणिया । । पद्यमय भावानुवाद यावज्जीवन काम सुख देने हित मनुहार । अथवा कोई देवता, लाये ऋद्धि अपार । । १ । । साधक माया समझकर करना मत विश्वास | माया परिहर सर्व ही, रहो आत्म - आवास । । २ । । तितिक्षा धर्म पद्यमय भावानुवाद तितिक्खं परमं णच्चा । आये जब प्रतिकूलता, कर लो समतापान । परम धर्म है तितिक्षा कर निश्चय पहचान ।। * १३१ * "
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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