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________________ *१२८ * ... - श्री आचारांगसूत्रम् -. -. - . - . -. -. -. -. -. -. -. - . - . -. -. -. पद्यमय भावानुवाद अन्त समय मध्यस्थ हो, दुख-सुख में समभाव। अनुपालन करे समाधि, पार लगेगी नाव।।१।। रखे निर्जरा भाव मन, राग-द्वेष से हीन। उपलब्धि परम समाधि, जब हो अन्तर्लीन।।२।। भीतर-बाहर पाप जो, कर ले साधक दूर। सूरि 'सुशील' कर्म अरे, होंगे चकनाचूर ।।३।। अन्तःकरण शुद्धी करण, करे भावना एक। . भिन्न रहे संसार से, जागृत करे विवेक।।४।। .आज्ञा-पालन. मुनि अपनी मर्याद का, रखिए पूरा ध्यान। उल्लंघन मत कीजिए, पालो प्राण समान।।५।। जो-जो भी उपसर्ग हों, सहन करो समभाव। यह आज्ञा जिनराज की, कर लेना बरताव।।६।। • आत्म प्रबोध. मूलसूत्रम् पाणा देहं विहिंसंति। पद्यमय भावानुवाद हिंसक प्राणी यदि तुम्हें, देता घातक कष्ट। सोचो करे विघात तन, आत्मा करे न नष्ट।। • अपूर्व सुरव रहस्य. मूलसूत्रम् आसवेहिं विवित्तेहिं। पद्यमय भावानुवाद आस्रव पापाचार से, अलग हुए जो सन्त। आत्मिक सुख से तृप्त हैं, सह दुख समतावन्त ।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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