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श्री आचारांगसूत्रम्
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पद्यमय भावानुवाद
अन्त समय मध्यस्थ हो, दुख-सुख में समभाव। अनुपालन करे समाधि, पार लगेगी नाव।।१।। रखे निर्जरा भाव मन, राग-द्वेष से हीन। उपलब्धि परम समाधि, जब हो अन्तर्लीन।।२।। भीतर-बाहर पाप जो, कर ले साधक दूर। सूरि 'सुशील' कर्म अरे, होंगे चकनाचूर ।।३।। अन्तःकरण शुद्धी करण, करे भावना एक। . भिन्न रहे संसार से, जागृत करे विवेक।।४।।
.आज्ञा-पालन. मुनि अपनी मर्याद का, रखिए पूरा ध्यान। उल्लंघन मत कीजिए, पालो प्राण समान।।५।। जो-जो भी उपसर्ग हों, सहन करो समभाव। यह आज्ञा जिनराज की, कर लेना बरताव।।६।।
• आत्म प्रबोध. मूलसूत्रम्
पाणा देहं विहिंसंति। पद्यमय भावानुवाद
हिंसक प्राणी यदि तुम्हें, देता घातक कष्ट। सोचो करे विघात तन, आत्मा करे न नष्ट।।
• अपूर्व सुरव रहस्य. मूलसूत्रम्
आसवेहिं विवित्तेहिं। पद्यमय भावानुवाद
आस्रव पापाचार से, अलग हुए जो सन्त। आत्मिक सुख से तृप्त हैं, सह दुख समतावन्त ।।