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आठवाँ अध्ययन : विमोक्ष
प्राणादिक आरंभ कर, वस्त्र किया तैयार ।
लाया अपने सदन से ग्रहण करे अणगार । । ३ । ।
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मुनिवर अपनी बुद्धि से, अथवा सुनकर जान। निश्चय यह मेरे लिए, भोजन वसन मकान । । ४ । ।
समारंभ का दोष यह, साधक तू यह जान । अतः गृही से मुनि कहे, कल्प न श्रद्धावान । । ५ । ।
मूलसूत्रम् -
तीसरा उद्देशक • बोध-प्रबोध •
मज्झिमेणं वयसावि एगे संबुज्झमाणा समुट्ठिया ।
पद्यमय भावानुवाद
मूलसूत्रम् -
कोई मध्यम आयु में, ग्रहण करें मुनि धर्म | धर्मकरण उद्यत बने, काटें अपने कर्म || • धर्मरहस्य •
समिया धम्मे आरिएहिं पवेइए ।
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पद्यमय भावानुवाद
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अहो धर्म समभाव है, फरमाते श्रमणेश । निश्चय कर दृढ़ता करो, मिटते कर्म कलेश ।। • परिषह विजेता •
मूलसूत्रम् -
आहारो वचया देहा परीहसहपभंगुरा पासह एगे सव्विदिएहिं परिगिलायमाणेहिं ।