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शुभ कर्मों के उदय से, दुर्लभ अवसर पाय । मगर मूढ़ भव भोग में, व्यर्थ हि जन्म गँवाय । ।५ । ।
पराक्रम बोध
मूलसूत्रम् -
से वसुमं सव्वसमण्णागयपण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पावं कम्मं तं णो अण्णेसी, जं सम्मति पासह तं मोणंति पासह, जं मोणंति पासह तं सम्मति पासह, ण इमं सक्कं सिढिलेहिं आइज्जमाणेहिं ।
पद्यमय भावानुवाद
श्री आचारांगसूत्रम्
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संयम धन का रूप लख, जो स्वामी कहलाय । सर्व चराचर तत्व का, बोध सुखद उर माय । । १ । । जाने सम्यक् ज्ञान जो, जाने वही मुनित्व । जाने अगर मुनित्व को, वह जाने सम्यक्तव । । २ । । दुष्कर संयम पालना, हर प्राणी अधिकार । सूरि 'सुशील' पराक्रमी, संयम का हकदार । । ३ । । अरे चराचर विषय में, रखता अगर ममत्व । मुनि 'सुशील' साधक नहीं, कभी न पाये तत्त्व । ।४।।
संयम अरु संसार का, सम्यक् भाव विचार । वह संयम पालन करे, अहो ! निपुण अणगार । । ५ । ।
रूक्ष अशन सेवन करे, सम्यक्दर्शी वीर । कर्म नष्ट तप से करे, पा जाये भव तीर । । ६ । ।
चौथा उद्देशक
• एकाकी विहार निषेध •
मूलसूत्रम् -
गामाणुगामं दुइज्जमाणस्स दुज्जायं दुप्परक्कंतं भवइ अवियत्तस्स भिक्खुणो ।