________________
श्रीदशाश्रुतस्कंधे प्रस्तावना
बे प्रकार जणावे छे. (१) मिथ्यावर्जनरुप (२) लाभरुप- लाभरुप छ प्रकारे छे ते निक्षेपाथी जाणवी. वली द्रव्य आशातना चार प्रकारे तथा त्रण प्रकारे पण बतावी छे. द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव-सचित्त-अचित्त-मिश्र-इष्ट अनिष्ट भेदो थाय, जे मनिनी उपधि चोरे, हरण करे तेमां निर्जरानो लाभ, ते अनिष्ट लाभ. फासु आहार उपधि मले ते द्रव्यइष्ट लाभ. एवी रीते क्षेत्र-काल-भावनो विचार करवो. आ प्रमाणे लाभ आशातना जाणवी.
मिथ्या परित्यागनो स्वयं सूत्रकार पोते मूलसूत्रमा फरमावे छे. निर्युक्तिकार तो भार दईने जणावे छे. जे जीव आशातनाने न वर्जतो ते जीव ज्ञानादिक गुणोने अने मोक्षने मेळवी शक्तो नथी.
इति तृतीय अध्ययनम् । हवे चोथा अध्ययनमां आशातनाओने टाळीने गुणोने धारण करनार मुनिराज गणिसंपदाओने पामनार होय छे. तेथी सूत्रकार महर्षि गणिसंपदाओने वर्णवे छे. द्रव्यभाव निक्षेप विगेरे उपरोक्त अध्ययननी जेम जाणी लेवू.
आचारसंपदा-श्रुतसंपदा-शरीरसंपदा-वचनसंपदा-वाचनासंपदा- मतिसंपदा-प्रयोगसंपदा अने संग्रहसंपदा आ आठे संपदाओनुं विस्तारपूर्वक वर्णन करेल छे. त्यार पछी संपदाओने आचरनार शिष्य चार प्रकारनी विनयप्रतिपत्ति धारण करे. (१) आचारविनय (२) श्रुतविनय (३) विक्षेपविनय (४) निर्घातविनय. ते केवा प्रकारनो आचारविनय ? आचारविनय चार प्रकारनो कह्यो छे.
__संयमसमाचारी, तपसमाचारी, गणसमाचारी, एकल्लविहार समाचारी, श्रुतविनय चार प्रकारनो छे. सूत्र वदे-अर्थ वदे-हित वदे-नि:शेष वदे ते श्रुतविनय. विक्षेपणा विनय चार प्रकारे छे, जे जीव पूर्वे धर्म पाम्यो नथी तेने धर्म पमाडवो, जे जीव धर्म पामेल छ तेनं स्वामीभाई तरीके बहमान करवं, धर्मथी च्यत थयेलाने धर्ममां स्थिर करवो तेमज धर्मना हित माटे-शुभना माटे-क्षेम तथा उन्नतिना माटे-अनुगामी बनाववा माटे तत्पर रहे.
दोषनिर्घात विनय चार प्रकारे छे. स्वने क्रोध आव्यो होय तो ज्ञानरुप पंखाए करी शान्त करे, मान-मायादि दोषो प्राप्त थया होय तो तेने परास्त करे. इच्छाओ जागृत थई होय तो तेने शान्त करे. आम करवाथी आत्मा सुप्रणिहित बने छे. तेने ज दोषनिर्घातना विनय कहेवाय छे. गुरुकुलवास सेवनार अंतेवासीने चार प्रकास्नी विनय-प्रतिपत्ति थाय. उपकरण-उत्पादना साहल्लता-वर्ण
ఉంగురుతుగుతుందసుముగం VII ఉదయం యంతయుగయుగం