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नवमी-दशमी दशानी विगत
ग्रहण कर्या होय तेनो त्याग करे अने चउमासा योग्य ग्रहण करे. तेनो विधि जाणी लेवो.
हवे भावस्थापनामां पांच समिति अने त्रण गप्तिनं विवेचन करवामां आव्युं छे तथा द्रष्टान्तो आपेला छे. पछी क्षमापना विधि बतावेल छे. तेनी अंदर चंडप्रद्योत अने उदायन आदि द्रष्टान्तो आपेला छे. क्रोध विषे द्रमक-अच्चुंकारी भट्टादिना द्रष्टान्तो छे. त्यारपछी मूल सूत्रकारे संक्षेपमां पांच कल्याणको वर्णव्या छे.
इति अष्टमी दसा समत्ता. आठमी दसाना सूत्र उपर चूर्णिकारे जे व्याख्या करी छे ते व्याख्या मोटे भागे कल्पसूत्रना नवमा व्याख्यानने मळती होवाथी अत्रे सारांश मूक्यो नथी. नवमी दसामां त्रीस मोहस्थानकोने जणावतां जीव केवी रीते महामोहनीय प्रकृतिओथी बंधाय छे ते जणाव्युं छे. तेमां नियुक्तिकारे चार निक्षेप, ओघथी एक प्रकृतिनो बंध, मोहस्थानकोने सेवतां आठे कर्मनो बंध, कर्मवाद पूर्वमां जेम जणाव्यं छे तेम निर्देश कर्यो छे. मोहना स्थानकोमां जीवहिंसा, मृषावाद, मायामृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह आदि आश्रवोने सेवतो मुनि महामोहनीयकर्म बांधे छे अने दुर्लभबोधि थाय छे. जे महात्माओ मोहने जीते छे ते केवलज्ञान पामीने मोक्षे जाय छे. देवगुरुनी निंदानो-उत्सूत्रप्ररुपणानो पण एमां समावेश करवामां आव्यो छे, माटे भवभीरु आत्माओए सूक्ष्मद्रष्टिए विचारी जीवनयात्रा सफल बनाववी जोईए.
इति नवमी दशा समता अथ दशमी दशामां नव नियाणा जणावेल छे. नवमी दशामां व्याख्यान वखते कोणिक राजा समवसरणमां आव्या छे. अने दशमी दशामां श्रेणिक राजा आव्या छे. अहिं शंका थाय छे के-कोणिकना राज्याभिषेक पहेलां श्रेणिकनुं मृत्यु थयुं छे, तेथी एम समजाय छे के दशा गोठववामां क्रम फेर होवो जोईए अथवा तो कोणिक चंपानगरीनो उपराज होवो जोईए, एम गणवाथी उपरनी शंका रहेती नथी.
नव नियाणामां प्रथम नियाणं आ प्रमाणे छे. कोई साधु के साध्वी उत्तम पुरुष अथवा स्त्री संबंधी भोगोने जोइने पोते एम मनोगत इच्छा करे के मारा आ तप संयम व्रत पालनना फल तरीके हुं पण सुंदर रुपवान्-आभूषणो पहेरवा
ఉదంతంతంతమంతయు XXX అంతయునుందుంతుతం