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सप्तमी दशानी विगत
वृषभने प्राप्त थएल उपसर्ग एक रात्रिक, बे रात्रिक, त्रण रात्रिक विद्यादि निमित्ते सहे. एवी रीते भाव पडिमाना छासठ भेदो थया. ए प्रमाणे भाव पडिमानो अधिकार कहीने तेमां उपधान पडिमानो अधिकार अने तेमां वळी भिक्षु पडिमानो अधिकार चाले छे.
__केवा प्रकारनो आत्मा पडिमा अंगीकार करे ? आठ गुणोए सहित अथवा पांच गुणोए सहित एवो द्रढ सम्यग्द्रष्टि जेने देव के देवेन्द्र पण सम्यक्त्वथी चलावी शके नहि, एवं चारित्रमा पण द्रढ होय. वली बुद्धिमान-बहुश्रुत एटले असंपूर्ण दशपूर्वी जघन्यथी नवमा पूर्वनी तृतीय आचार वस्तुना काल ज्ञान विगेरेना ज्ञाता, अचल एटले ज्ञानादिमां स्थिर, स्थिर चित्तवाळा , अनुकूल उपसर्गोमां चलायमान न थाय, राग द्वेष रहित भय-भैरवादि उपसर्गने सहन करे, वली परिचित-काल-आमंत्रण-क्षमापना-तप-संजम-संधयण -भत्त-बहि निक्षेपआवर्ण-लाभं-गमण ए बार द्वारो वडे आत्माने भावता विचरे. नामनिक्षेपो पूर्ण थयो. हवे सूत्रानुगममां सूत्रनी व्याख्या करे छे. जेमां महिनानुं प्रमाण होय ते मासिक पडिमा. आर्य स्थविर भगवंतोए भिक्षुकनी बार पडिमा कही छे. ते एक मासथी मांडीने सात मास सुधीनी. पछी त्रण पडिमाओ सात सात अहोरात्रिकनी तथा एक पडिमा अहोरात्रिकनी अने एक पडिमा फक्त रात्रिकनी, एवं बार पडिमाओ थई.
पडिमाधारीओए कराती विधि....एक मासिकादि पडिमाने धारण करनार साधु भगवान् नित्यं वोसढ़काय एटले सर्वथा शरीरनी संभाल लेवानो त्याग करे. ते द्रव्यथी बे प्रकारे छे. द्रव्यथी जेम के जे स्त्रीनो पति परदेश गयो होय ते स्त्री स्नान न करे. भूमि उपर संथारो करे. शणगारनो त्याग करे. विगेरे आचरणथी पतिव्रता धर्मनुं पालन करे. ते द्रव्य वोसट्टकाय कहेवाय. भावथी साधु भगवंत वायु-पित्त-कफ के संभ्रमिता. रोगोथी पीडाता होय तो पण प्रतिकार न करे.
वळी युक्त देह-ते पण बे प्रकारे-द्रव्यथी अने भावथी. द्रव्यथी जेम कोई मल्ल कसरतशालामां शरीरनी परवा कर्या विना कुस्ती करे तेम, भावथी कोई बांधे-रुंधे-हणे-मारे अथवा वारे तो पण साधु भगवंत प्रतिकार न करे. वळी जे कोई उपसर्गो देव-मनुष्य के तिर्यंच संबंधी अनुकूल के प्रतिकूल उपस्थित थाय तेने सम्यक् प्रकारे सहे. मासिक पडिमाधारी मुनिराजने आहारमा एकदत्ती
శంవంతం తతంగం XIV ఉండి ఉతంతంతయంతం