________________
आठ प्रकार के सूक्ष्म जीव निम्नांकित हैं
(१) स्नेह सूक्ष्म हिम कण ।
(२) पुष्प सूक्ष्म बड़ आदि के पुष्प ।
(३) प्राणी सूक्ष्म : चले तब दिखाई दे स्थिर हो तब न दिखाई दे या रजकण के रुप में दिखाई दे। (४) उत्तिंगसूक्ष्म : कीटिका नगर में रही हुई चिंटियाँ और दूसरे भी सूक्ष्म जीव ।
(५) पनक सूक्ष्म : पंचवर्ण की काई, सेवाल, लीलफूल ।
(६) बीज सूक्ष्म : तूष के बीज आदि ।
(७) हरित सूक्ष्म : उत्पन्न होते समय पृथ्वी के समान वर्ण युक्त वनस्पति जीव ।
(८) अंड सूक्ष्म : मक्षिका आदि के सूक्ष्म अंडे आदि ।
सभी इंद्रियों में राग द्वेष रहित प्रवृत्त मुनि उपरोक्त अष्ट प्रकार के जीवों को जानकर अप्रमत्त भाव से शक्ति अनुसार उनकी रक्षा के लिए प्रयत्न करें । १५,१६ ।
"पडिलेहण के द्वारा जीव रक्षा"
धुवं च पडिलेहिज्जा, जोगसा पाय सिज्ज - मुच्चार भूमिं च संथारं
स्वशक्ति होते हुए मुनि को प्रतिलेखना के समय पात्र, कंबल, उपाश्रय, स्थंडिल भूमि, संस्तारक और आसन आदि उपकरण की शास्त्रोक्त रीति से प्रतिलेखना कर, अहिंसा धर्म का पालन करना चाहिये । १७ ।
"परिष्ठापनिका समिति से जीव जयणा"
उच्चारं पासवर्ण, खेलं सिंघाण फासुअं पडिलेहित्ता, परिठाविज्ज
कंबलं ।
अदुवासणं ॥ १७ ॥
" गृहस्थ के घर गोचरी के समग्र जीव जयणा"
जल्लिअं । संजए ॥ १८ ॥
मुनि भूमि का प्रतिलेखन कर, जहां जीव रहित भूमि हो वहां, बड़ी नीति, लघु नीति, कफ (श्लेष्म) कान एवं नाक का मेल, आदि परठने योग्य पदार्थों को परठकर साध्वाचार का पालन करें | १८ |
पविसित्तुं परागारं, पाणट्ठा. भोअणस्स वा ।
जयं चिट्टे मिअंभासे, न य रुवेसु मणं करे ॥ १९ ॥
आहार पानी के लिए गृहस्थ के घर गया हुआ गीतार्थ मुनि वहां जयणापूर्वक खड़ा रहे, यापूर्वक मित/ कम बोले, दातार स्त्री आदि की ओर मन केन्द्रित न करें। रुप न निरखें। इस प्रकार साध्वाचार का पालन करें । १९ । .
श्री दशवैकालिक सूत्रम् / ९५