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__ हे आर्यक, पार्यक, पिता, चाचा, मामा, भानजा, पुत्र पौत्र, हे, भो, हल, अन्न, भट्ट, स्वामी, गोमी, होल, गोल, वसुल, इत्यादि नामों से पुरुषों को न बुलावें। ऐसे बुलाने से राग-द्वेष अप्रीति आदि दोषों की उत्पत्ति होती हैं। . जिस पुरुष को बुलाना हो उसका नाम लेकर, या गौत्र से या यथायोग्य गुण-दोष का विचारकर एक बार या बार-बार बुलावें। १८ से २०। "पशुओं के विषय में भाषा का प्रयोग" .
पंचिंदिआण पाणाणं, एस इत्थी अयं पुर्य। जाव गं न वि जाणिज्जा, ताव जाइत्ति आलवे॥२१॥ तहेव माणुसं पसुं, पक्खिं वा वि सरीसवं। थूले पमेइले वज्जे, पाइमे ति अ नो वए॥२२॥ परिवूढ ति गं बूआ, बूआ उवचिअ ति अ। संजाए पीणिए वा वि, महाकायत्ति आलवे॥२३॥ तहेव गाओ दुज्झाओ, दम्मा दोरहग ति अ। वाहिमा रहजोगि ति, नेव भासिज्ज पन्नवं ॥२४॥ जुवं गावित्ति गं बूआ, घेणुं रसदयत्ति आ।
रहस्से महल्लए वा वि, वए संवहणि त्ति अ॥२५॥ पंचेन्द्रिय प्राणियों में यह स्त्री रुप गाय है या पुरुष रुप वृषभ है ऐसा निर्णय न हो तो तब तक प्रसंगवश बोलना पड़े तो गाय की जाति आदि जातिवाचक शब्द का प्रयोग करें। - इसी प्रकार मनुष्य, पशु-पक्षी सर्प, अजगरादि के विषय में यह स्थूल है, मेदयुक्त है, वध्य है(वाह्य है) पाक्य है, पकाने योग्य है। इस प्रकार मुनि न बोले। इससे अप्रीति, वधादि की शंका सह अशुभ बंध का निमित्त है।
- प्रयोजनवश आवश्यक हो तो, बलवान है, (परिवृद्ध है) उपचित देह युक्त है, युवा है, पुष्ट है, महाकाय युक्त है इस प्रकार उपयोग पूर्वक बोले। .. प्रज्ञावान् मुनि गायादि दुहने योग्य है, वृषभ दमन करने जैसे हैं जोतने जैसे हैं, भार वहन करने योग्य हैं, रथ में जोड़ने योग्य हैं इस प्रकार न बोलें। पाप का कारण एवं प्रवचन की लघुता का कारण है।
प्रयोजनवश कहना पड़े तो गाय, बैल युवा है, गाय दूध देनेवाली है, बैल छोटा है, बड़ा है, धोरी वृषभ है इस प्रकार निर्दोष निष्पाप भाषा का प्रयोग करें। २१ से २५। "वनस्पति के विषय में भाषा का प्रयोग"
तहेव गंतुमुज्झाणं, पव्वयाणि वयाणि । रुक्खा महल्ल पेहाए, नेवं भासिज्ज पन्नवं॥२६॥
श्री दशवैकालिक सूत्रम् /८५