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"महाचार कथा के उपयोगी शब्दार्थ" गणिम् आचार्य उज्जाणंमि उद्यान में समोसढं पधारे हुए रायमच्चा राज्य प्रधान निहुअप्पारो निश्चल मन से हाथ जोड़कर भे भगवंत आयार गोयरो आचार विषय॥१/२॥ निहुओ असंभ्रान्त आइक्खइ कहे॥३॥ धम्मत्थ कामाणं धर्म का प्रयोजन मोक्ष, उसको चाहने वाले दुरहिट्ठियं दुष्कर आश्रय करने योग्य॥४॥ नन्नत्थ दुसरे स्थान पर नहीं ओरिसं ऐसा वृत्तं कहा हुआ दुच्चर दुष्कर विउलट्ठाणभाइस्स संयम स्थान सेवी॥५॥ सखुड्डगविअत्ताणं बालक एवं वृद्ध साधुओ को कायव्वा करना अखंड फुडिआ देश सर्व विराधना रहित॥६॥ जाई जिसे अवरज्जइ विराधता है तत्थ अन्नेयरे उसमें से एक भी निग्गंथत्ताउ निग्रंथ रुप से भस्सइ भ्रष्ट होता है॥७॥अजाइया अयाचित दंत सोहणमित्तं दांत साफ करने की सली भी ॥१४॥ भेआययण विज्जिणो चरित्र में अतिचार से भयभीत॥१६॥ अहमस्स अधर्म पाप सुमुस्सयं बड़े दोषों का॥१७॥ बिड पका हुआ नमक उभेइमं समुद्रीनमक, फाणिअं नरम गुड़ वओरया में रक्त॥१८॥ अणुफासे महिमा अन्नयरामवि किंचित भी कामे सवे इच्छे ताइणा त्राता।२१। उवहिणा उपधि की अपेक्षा से ममाइयं ममत्व को। २२। लज्जासमा संयम
अविरोधी। २४। उदउल्लं जलाद्र निवडिआ पडे हो। २५। तयस्सिए उनकी निश्रा में। २८। जायतेअं उत्पन्न होते ही तेजस्वी जलइत्त ज्वलन करने अन्नयरं सभी बाजु से धारयुक्त।३३। पाइणं पूर्व दिशा में पडिणं पश्चिम दिशा में अणुदिसामवि विदिशाओं में भी अहे अधोदिशा में। ३४। भूआणं प्राणीओं को आधाओ घात करने वाला हव्ववाहो अग्नि पइव दीपक पयावट्ठा ताप हेतु ।३५। अणिलस्स वाउकाय के। ३७। तालिअंटेण तालवृन्त, विहुअणेण हिलाने से वेआवेऊणं हवा करवाना वा वली।३८। उइति उदीरणा करना। ३९। इसिणा ऋषि। ४७। नियागं निमंत्रित। ४९। ठिअप्पाणो निश्चल चित्त युक्त।५०। कंसेसु कांसे के प्याले कंस पाएस कांसे के पात्र में कुंडमोएस मिट्टी के पात्र में। ५१ । भत्तधोअण पात्र धोने का छडुणे त्याग करने में छिन्नंति छेदते हैं। ५२। सिया कदाच ओअमटुं इस कारण से।५३। आसंदी मंचिका पलिअंकेसु पलंग में मंच खटिआ आसालअसु आरामकुर्सी अणायरिअं अनाचरित अज्जाणं साधुओं को आसइत्तु बैठने के लिए सइत्तु सोने के लिए।५४। पीढए बाजोट अहिट्ठगा मार्ग में चलनेवाले। ५५। गंभिर विजया अप्रकाश आश्रय युक्त विवज्जिआ विशेष प्रकार से मना करें।५६। इमेरिसं आगे कहा जायगा ऐसे आवज्जइ प्राप्त होता है अबोहि मिथ्यात्व रुप फल।५७। विपत्ति नाश पडिग्याओ प्रत्याघात पडिकोहो प्रतिक्रोध अगुत्ती नाश।५९। अन्नयरागस्स किसी को भी अभिभूअस्स पराभव पाया हुआ।६०। वुक्कंतो भ्रष्ट जढो नाश पाना।६१। घसासु पोलीभूमि भिलुगासु दरार युक्त भूमि विअडेण प्रासुक जल से उप्पलावले प्लावित करना। ६२ ।असिणाणमहिठ्ठगा अस्नान का आश्रय करने वाले। ६३। कक्कं कल्क चंदनादि का लेप लुद्धं लोदर पउमगाणि केसर गायस्स शरीर के उव्वट्ठणट्ठाओ उद्वर्तन अर्थात उबटन के लिए।६४। नगिणस्स नग्न, प्रमाणोपेत वस्त्रधारी, दीह दीर्घ नहंसिणो दीर्घ नखयुक्त कारिअं करना। ६५। खवंति शोधता है अमोह-दंसिणो मोहरहित धुणंति खपाता है नवाई नये।६८। सओवसंता सदाउपशांत उउप्पसन्ने शरद ऋतु में उर्वेति उत्पन्न होता है सविज्जाविज्जाणुगया स्वयं की परलोकोपकारिणी विद्यायुक्त जसंसिणो यशस्वी अममा ममत्वरहित।६९।
श्री दशवैकालिक सूत्रम् / ६७