________________
इस त्रुटी को पूर्ण करने के लिये अब तक दशवैकालिक सूत्र का ऐसा कोई हिन्दी अनुवाद किसी की तरफ से प्रकाशित नहीं हुआ, जो सर्व-साधारण को समझने में और अध्ययन करने में सुगम, सरस तथा उपयुक्त हो। प्रस्तुत (अध्ययन-चतुष्टय नामक) पुस्तक में श्रीदशवैकालिक सूत्र के आदिम 'दुमपुफिया १, सामणपुब्विया २, खुल्लयायारकहा ३, छज्जवणिया ४, इन चार अध्ययनों का मूल, उनका शब्दार्थ और भावार्थ सुगम हिन्दी-भाषा में दर्ज किया गया है; जो कि संस्कृत- टीका
और टब्बा आदि के आधार से इतना सरल बना दिया गया है कि अभ्यास करनेवाले साधु साध्वियों को इनका रहस्य समझ लेने में तनिक भी संदिग्धता नहीं रह सकती।
यह सूत्र साध्वाचार मूलक है, अतएव साधु साध्वियों को इसका अभ्यास कर लेना आवश्यक है। क्योंकि-समस्त गच्छों की मर्यादा के अनुसार इस ग्रन्थ का अभ्यास किये बिना साधु साध्वी बड़ी दीक्षा के योग्य नहीं समझे जाते। अस्तु,
यदि इस अनुवाद को साधु साध्वियों ने अपनाया तो आगे के अध्ययनों का भी अनुवाद इसी प्रकार तैयार करके यथावकाश प्रकाशित करने का उद्योग किया जायगा। अन्त में भूल चूक का मिच्छामिदुक्कडं देकर विराम लिया जाता है। इति शम्। .
वीर संवत् १९५१ वसंत-पंचमी
(आचार्य -देव श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी म. सा.)।
राजगढ़ (मालवा)
*
*
*
*
"विशेष"
पूज्य पाद आचार्य देव श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. की भावनानुसार दूसरे छह अध्ययन एवं दो चूलिका के शब्दार्थ, भावार्थ तैयार कर मुनिभगवंतों के करकमलों में समर्पित किया है। श्री हेमप्रभसूरिजी द्वारा संपादित एवं मुनि नथमलजी द्वारा संपादित श्री दशवैकालिक सूत्र के शब्दार्थ भावार्थ का सहयोग लिया है अत: उनका हार्दिक आभार मानता हूँ।
जिनाज्ञा विरूद्ध कुछ लिखा गया हो तो मिच्छामि दुक्कडं।
___ - मुनि जयानंद
श्री दशवकालिक सूत्रम् /३