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प्रस्तावना
ग्यारह अंग, बारह उपांग, छ:' छेद, चार मूल, दर्श' पयन्ना, नन्दी और अनुयोगद्वार ये पैंतालीस आगम जैनों को मान्य है, जो कि खास सर्वज्ञ सर्वदर्शी श्रमण भगवान् श्रीमहावीरस्वामी प्ररूपित और गणधर, श्रुतकेवली, पूर्वधरबहुश्रुत गुम्फित माने जाते हैं। दशवैकालिकसूत्र उन्हीं में से साध्वाचार विषयक एक है।
इसके रचनेवाले महावीरस्वामी के चौथे पाट पर विराजमान प्रभवस्वामी के शिष्य युगप्रधानाचार्य श्रुतकेवी भगवान् श्री शय्यम्भवस्वामीजी महाराज हैं। इसीसे दशवकालिक को सूत्र (आगम) की संज्ञा दी गई है। क्योंकि
सुत्तं गणहररइयं, तहेव पत्तेयबुद्धरइयं च।
सुअकेवलिणा रइयं, अभिन्नदसपुविणा रइयं॥१॥ -गणधरों के बनाये हुए, प्रत्येक बुद्ध मुनिवरों के रचे हुए, श्रुतकेवली और संपूर्ण दश पूर्वधारियों के व्दारा लिखे हुए शास्त्र सूत्र (आगम) कहाते हैं।
यह सूत्र श्रीशय्यम्भवस्वामी ने अपने अल्पायुष्क-शिष्य मनक के वास्ते बनाया है।
(१)-आचारांग १, सुयगडांग २, ठाणांग ३, समवायांग ४, भगवति ५, ज्ञाताधर्मकथा ६, उपासक दशा ७, अन्तकृ द्दशा ८, अनुत्तरोपपातिक ९, प्रश्नव्याकरण १०, और विपाकश्रुत ११ .
(२)-औपपातिक, रायपसेणी, जीवाभिगम, पनवणा, जंबूदीपपन्नत्ति, चंदपन्नत्ति, सूरपन्नति, कप्पिया, कप्पवडिंसिया, पुफिया, पुप्फचूलिया, वण्हिदसा, वर्तमान में कप्पिया आदि पांचों का 'निरयावलिया' नामक सूत्र
(३)-दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प, व्यवहारश्रुत, निशीथ, जीतकल्प, पंचधेदकण। (४)-आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, पिंडनियुक्ति।
(५)-चउसरण, आउरपच्चक्खाण, भत्तपयन्ना, संथार पयन्ना, मरणविही, देवेन्द्रस्तव, तन्दुलक्याली, चंदाविज, गणिविज्जा, जोइसकरंड।
(६)-बनाये हुए। (७)-साधु और साध्वियों के आहार विहार आदि आचार-विचारों को दिखलाने वाला।
(८)-उत्पाद, आग्रायणीय, वीर्यप्रवाद, अस्तिनास्तिप्रवाद, ज्ञानप्रवाद, सत्यप्रवाद, आत्मप्रवाद, कर्मप्रवाद, प्रत्याख्यानप्रवाद, विद्याप्रवाद, अबन्ध्यप्रवाद (कल्याणक), प्राणावायप्रवाद, क्रियाविशाल, और लोकबिन्दुसार, इन १४ पूर्वो की विद्या का धारक 'श्रुतकेवली' कहलाता है।
(९)-१-जन्म राजगृही नगरी, गोत्र वात्स्य, यज्ञस्तंभ के नीचे शांतिनाथस्वामी की प्रतिमा को देखने से प्रतिबोध पाकर' दीक्षा ली और २८ वर्ष गृहस्थ पर्याय, ११ वर्ष सामान्य साधु पर्याय तथा २३ वर्ष युगप्रधानपद पर्याय पालन करके श्रीवीर के निर्वाण से ६८ वर्ष बाद बासठ वर्ष का आयुष्य पूरा करके स्वर्गवासी हुए।
(१०)-श्री शय्यंभवस्वामी के दीक्षा ले लेने के बाद उनकी सगर्भा स्त्री से उत्पन्न पुत्र जिसने आठ वर्ष की आयु में दीक्षा ली और छ: महिना संयम पालन करके स्वर्ग को प्राप्त किया।
श्री दशवैकालिक सूत्रम् /१