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पाणभूयाई एकेन्द्रिय आदि जीवों की हिंसइ हिंसा करता है य और पावयं कम्मं ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों को बंध बांधता है से उस तं पापकर्म का कडुअं फलं कडुआ फल होइ होता है ।
अजयं भुंजमाणो य, पाणभूयाई हिंसइ । बंधड़ पावयं कम्मं तं से होड़ कडुअं फलं ॥ ५ ॥
शब्दार्थ - अजयं एषणा समिति का उल्लंघन करके भुंजमाणो भोजन करता हुआ साधु पाणभूयाई एकेन्द्रिय आदि जीवों की हिंसइ हिंसा करता है य और पावयं कम्म ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों को बंधइ बांधता है से उस तं पापकर्म का कडुअं फलं कडुआ फल होड़ होता है ।
अजयं भासमाणो य, पाणभूयाइं हिंसड़ । बंधड़ पावयं कम्मं, तं से होड़ कडुअं फलं ॥ ६ ॥
शब्दार्थ - अजयं भाषा समिति का उल्लंघन करके भासमाणो बोलता हुआ साधु पाणभूयाई एकेन्द्रिय आदि जीवों की हिंसइ हिंसा करता है य और पावयं कम्मं ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों को बंधइ बांधता है से उस तं पापकर्म का कडुअं फलं कडुआ फल होइ होता है ।
साधु अथवा साध्वी ईर्यासमिति का उल्लंघन करके अजयणा से गमन करते, खड़े रहते, बैठते, शयन करते, एषणा समिति का उल्लंघन करके अयत्ना से भोजन करते, और भाषासमिति का उल्लंघन करके अयत्ना से बोलते हुए एकेन्द्रिय आदि जीवों की हिंसा करते हैं और ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों को बांधते हैं, और उन पापकर्मों का संसार में परिभ्रमण रूप कडुआ फल मिलता है।
कहं चरे ? कहं चिट्ठे ? कहमासे ? कहं सए ?
कहं भुंजतो भासतो ? पावकम्मं न बंधइ ? ॥ ७ ॥
शब्दार्थ - कहं किस प्रकार चरे गमन करे ? कहं किस प्रकार चिट्ठे खड़ा रहे ? कहं आसे किस प्रकार बैठे ? कहं किस प्रकार सए शयन करे ? कहं किस प्रकार भुंजतो भोजन करते, और भांसतो बोलते हुए पावकम्मं पापकर्म को न बंधइ नहीं बांधता ?
जम्बूस्वामी पूछते हैं कि हे भगवन् ! किस प्रकार चलते, बैठते, खड़े रहते, सोते, भोजन करते और बोलते हुए साधु-साध्वी पाप-कर्म को नहीं बांधते हैं ?
जयं चरे जयं चिट्ठे, जयमासे जयं सए । जयं भुंजंतो भासतो, पावकम्मं न बंधइ ॥ ८ ॥
१. नाश २. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, नामकर्म, गोत्रकर्म, अन्तरायकर्म और आयुष्यकर्म ये आठ कर्म है। इनमें नाम, गोत्र, वेदनीय, आयु ये चार भवोपग्राही कर्म कहाते हैं।
श्री दशवैकालिक सूत्रम् / ३६