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________________ बहुस्सुयं. जहा से उडुवई चन्दे नक्खत्तपरिवारिए । पमिपुण्णे पुण्णमासीए एवं हवइ बहुस्सुए २५. जहा से सामाइयाणं कोट्ठागारे सुरक्खिए। नाणाधनपमिपुण्णे एवं हव बहुस्सुए जहा सा उमाण पवरा जम्बू नाम सुदंसणा। आणाढियस्स देवस्स एवं हव बहुस्सुए। जहा सा नईण पररा सलिला सागरंगमा । सीया नीलवन्तपवहा एवं हव बहुस्सुए जहा से नगाण पवरे सुमहं मन्दरे गिरी । नाणोसहिपऊलिए एवं हव बहुस्सुए जहा से सयंभूरमणे उदही अक्खओदए । नाणारयणपमिपुण्णे एवं हवइ बहुस्सुए समुद्दगम्नीरसमा पुरासया अचकिया केणइ पुप्पहंसया । सुयस्स पुण्णा विउलस्स ताश्णो खवित्तु कम्मं गश्मुत्तमं गया तम्हा सुयमहिट्टिा उत्तमट्टगवेसए । जेणप्पाणं परं चेव सिद्धिं संपाजणेासि ३२. ॥त्ति बेमि। ॥ बहुस्सुयम् ॥ हरिएसिज्जं द्वादसं अध्यानम *सोवागकुलसंभूयो गुणुत्तरधरो मुणी । हरिएसबलो नाम आसि जिक्खू जिन्दिा १ Ch. (चा.) अणा.
SR No.022575
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivraj Ghelabhai Doshi
PublisherJivraj Ghelabhai Doshi
Publication Year1925
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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