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________________ सम्मत्तपरकमे. १२९ २५ एगग्गमणसंनिवेसणयाए णं जन्ते जीवे किं जणय ? ए चित्तनिरोहं करेइ ॥ २५ ॥ २६ संजमएणं जन्ते जीवे किं जणयइ ? स अणण्हयत्तं जणयइ ॥ २६ ॥ २७ तवेणं जन्ते जीवे किं जणयइ ? तवेणं वोदा जयइ ॥ २७ ॥ २८ वोदाणं जन्ते जीवे किं जणयइ ? वो किरियं जयइ, अकिरिया भवित्ता तो पहा सिज्जइ बुज्जइ मुच्चइ परिनिव्वायर, सव्वदुक्खामन्तं करेइ || २८ ॥ 1 २७ सुहसाएवं जन्ते जीवे किं जणयइ ? सु° अणुस्सुयत्तं जणयइ, अणुस्सुयाए णं जीवे एकम्पए अणुब्भडे विगयसोगे चरित्तमोहणिड कम्मं खवेइ ॥ २९ ॥ ३० अप्पडिबद्धयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ? अ° निस्सङ्गत्तं जणय, निस्सङ्गत्तेणं जीवे एगे एगग्गवित् दिया य राम्रो य असऊमाणे अप्पाड - बद्धे यावि विहर५ ॥ ३० ॥ ३१ विवित्तसयणासण्याए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ? वि चरितगुत्तिं जणयइ, चरित्तगुत्ते य णं जीवे विवित्ताहारे दढचरिते एगन्तरए मोक्खभावपरिवन्ने विहकम्मगण्ठि निकरेइ ॥ ३१ ॥ ३२ विनियट्टयाए णं जन्ते जीवे किं जणयइ ? वि पावकम्माणं करण्याए अब्नुट्ठेइ, पुवबद्धाए
SR No.022575
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivraj Ghelabhai Doshi
PublisherJivraj Ghelabhai Doshi
Publication Year1925
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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