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उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ९)
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अब्भुट्रियं रायरिसि, पव्वज्जाठाणमुत्तमं । सक्को माहण वेसेणं, इम्मं वयणमब्बवी ॥ ६ ॥ किण्णु भो अज्ज मिहिला, कोलाहलगसंकुला । सुव्वंति दारणा सहा, पासाएसु गिहेसु य ॥ ७ ॥ एयम? निसामित्ता, हेउकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देवे द इणमब्बवी ॥ ८ ॥ मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे ।। पत्तपुफ्फफलोवेए, बहूणं बहुगुणे सया ॥ ९ ॥ वारण हीरमाणमि, चेइयंमि मणोरमे । दुहिया असरणा अत्ता, एए कंदति भी खगा ॥ १० ।। एयमट्ठ निसामित्ता, हेउकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसि, देवि दो इणमब्ववी ॥ ११ ॥ एस अग्गी य वाऊ य, एय डज्झइ मंदिरं ।। भयवं अंतेउरं तेणं, कीस णं नोवपेक्खह ॥ १२ ॥ एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊकारणचाइओ । तओ नमी रायरिसी, देवेंद इणमब्बवी ।। १३ ॥ सुहं बसामा जीवामा, जेसि मो नत्थि किंचण । मिहिलाए डझमाणीए, न मे डज्झइ किंचणं ॥ १४ ।। चत्तपुत्तकलत्तस्स, निव्वावारस्स भिक्खुणो । पियं न विज्जइ किचि, अप्पियं पि न विज्जइ ॥ १५ ॥ बहुं खु मुणिणो भई, अणगारस भिक्खुणा । सबओ विष्पमुक्कस्य, एगंतमणुपरसओ ॥ १६ ।।