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उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययनं १ )
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धम्मज्जियं च ववहार बुद्धेहीयरियं सया । समायर तो बबहार गरह नाभिगच्छइ ॥४२॥ मणोगय वक्कग, जाणित्तायरियस्स उ । तं परिगिज्झ वायाए, कम्मुणा उत्रवायए ॥ ४३ ॥ विसे अचाइए निच्च खिप्पं हवई सुबोइए । मोबइट्ठ सुकय, किच्चाई कुब्बई सया ॥४४॥ नच्चा नमइ मेहावी, लोए किन्ती से जायइ । वई किच्चाणि सरणं, भूयाणं जगइजहा ||४५॥ पुज्जा जस्स पसीयति, संबुद्धा पुव्वस थुया । पसन्ना लाभइस्सति, विल अट्ठियं सुयं ॥४६॥ स पुज्जत्थे सुविणीयस सए, मणोरुई चिट्ठइ कम्मसंपया । तवासमायारिसमाहिस वुडे, महज्जुई पं च वयाई पालिया । ४७ ।। स देवगंधब्बमणुस्स पूइए, चइत देह मलप कपुव्वयं । सिद्धे बा हवई सासए, देवे वा अप्परए महिट्टिए ||४८|| न्ति बेमि ॥
इति विणयसुग्र णाम पढमं अज्झयण समत्तं ॥ १॥
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|| अह दुइ परीसदझयण
सुयं मे आउस तेण भगवया एवमक्खायं । इह खलु बावीस परीसहा, समणेण भगवया महावीरेण कासवेण षवेइया ।