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१५४ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ३४) मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, दस होंति य सागरा मुहुत्तहिया । उकोसा होइ ठिई, नायव्वा पम्हलेसाए ॥ ३८ ॥ मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, तेत्तीस सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा सुक्कलेसाए ।। ३९ ।। एसा खलु लेसाण, ओहेण ठिई वण्णिया हाई । चउसु वि गईसु एत्तो, लेसाण ठिई तु वाच्छामि ॥ ४० ॥ दस वाससहस्साई, काउए ठिई जहन्निया हाइ । तिण्णुदही पलिओवम, असंखभाग च उकोसा ।। ४१ ।। तिण्णुदही पलिओवमसंखभागो जहन्नेण नीलठिई । दसउदही पलिआंवम असंखभाग च उक्कोसा ॥ ४२ ॥ दसउदही पलिओवम असंखभाग जहन्निया होइ । तेत्तीससागरराई उकोसा, हाइ किण्हाए लेसाए ।। ४३ ॥ एसा नेरइयाण, लेसाण ठिई उ वणिया हाई । तेण पर वोच्छामि, तिरियमणुस्साण देवाणं ।। ४४ ॥ अतोमुहुत्तमद्धं. लेसाण जहिं जहिं जाउ । तिरियाण नराण वा, वज्जित्ता केवलं लेस ॥ ४५ ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, उक्कोसा होइ पुव्वकाडोओं । नवहि वरिसेहि ऊणा, नायव्वा सुक्कलेसाए ।। ४६ ।। एसा तिरियनराणं, लेसाण ठिई उ वणि या होइ । तेण पर वाच्छामि, लेसाण ठिईउ देवाणं ॥ ४७ ॥ दस वाससहस्साई किण्हाए ठिई जहन्निया हेाइ । पलियमसंखिज्ज इमो, उक्कोसो होइ किण्हाए । ४८ ॥