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एगवीसाए सबले, बावीसाए परीसहे ।
जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मांडले ।। १५ ।। तेवीसाइ सूयगडे, रूवाहिए सुरेस य ।
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जे भिक्खु जयई निच्च से न अच्छइ मंडले ।। १६ ।। पणवीसभावणासु, उद्देसेसु दसाइणं ।
जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छर मंडले ॥ १७ ॥ अणगारगुणेहिं च, पगप्पम्मि तव य ।
उत्तराध्ययन सूत्रम् (अध्ययन ३२ )
जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छर मंडले ।। १८ ।। पावसुयपसंगे, मोहठाणेसु चेव य ।
जे भिक्खु जयई निच्च, से न अच्छइ मंडले ॥ १९ ॥ सिद्धाइगुणजागे, तेत्तीसासायासु य ।
जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ।। २० ।। इय एएस ठाणेसु, जे भिक्खू जयई सया । सिप्पं सेा सव्वसंसारा, विपमुच्चइ पंडिओ ।। २१ ।। त्ति बेमि ॥ इति चरणविही णाम एगतीसइम' अज्झणं समन्तं ॥ ३१ ॥
|| अह पमायट्ठाण बत्तीसइमं अज्झयणं ||
अच्चंतकालस्स 'समूलगरस, सब्वस्स दुक्खस्स उ जो पमाक्खा । तं भासओं मे पडिपुण्णचित्ता, सूणेह एवं तहियं हियत्थ ||१||