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________________ १३६ एगवीसाए सबले, बावीसाए परीसहे । जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मांडले ।। १५ ।। तेवीसाइ सूयगडे, रूवाहिए सुरेस य । " जे भिक्खु जयई निच्च से न अच्छइ मंडले ।। १६ ।। पणवीसभावणासु, उद्देसेसु दसाइणं । जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छर मंडले ॥ १७ ॥ अणगारगुणेहिं च, पगप्पम्मि तव य । उत्तराध्ययन सूत्रम् (अध्ययन ३२ ) जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छर मंडले ।। १८ ।। पावसुयपसंगे, मोहठाणेसु चेव य । जे भिक्खु जयई निच्च, से न अच्छइ मंडले ॥ १९ ॥ सिद्धाइगुणजागे, तेत्तीसासायासु य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ।। २० ।। इय एएस ठाणेसु, जे भिक्खू जयई सया । सिप्पं सेा सव्वसंसारा, विपमुच्चइ पंडिओ ।। २१ ।। त्ति बेमि ॥ इति चरणविही णाम एगतीसइम' अज्झणं समन्तं ॥ ३१ ॥ || अह पमायट्ठाण बत्तीसइमं अज्झयणं || अच्चंतकालस्स 'समूलगरस, सब्वस्स दुक्खस्स उ जो पमाक्खा । तं भासओं मे पडिपुण्णचित्ता, सूणेह एवं तहियं हियत्थ ||१||
SR No.022569
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
PublisherPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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