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________________ १३४ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ३१) आयरियमाईए, वेवावच्चम्मि दसविहे ।। आसेवणं जहाथाम, वेयावच्च तमाहिय ।। ३३ ।। वायणा पुच्छणा चेव, तहेव परियट्टना । अणुपेहा धम्मकहा, सज्झाओ पंचहा भवे ।। ३४ ।। अट्टरुदाणि वज्जित्ता, झाएज्जा सुसमाहिए । धुम्मसुक्काई झाणाई, झाण तं तु बुहावए ॥ ३५ ॥ सयणासणठाणे वा, जे उ भिक्खू न वावरे । कायस्स विउस्सग्गो, छट्ठो सो परिकित्तिओ ।। ३६ ।। एवं तवं तु दुविहं, जे सम्मं आयरे मुणि । सो खिप्प सव्वसंसारा, विप्पमुच्चई पंडिओ ॥ ३७ ।। त्ति बेमि ॥ इति तवमग्ग णाम तीसइम अज्झयण समत्तं ॥ ३० ॥ ॥ अह चरणविही एगतीसइमं अज्झयणं ।। चरणविहिं पवक्खामि, जीवस्स उ सुहावह । जं चरित्ता बहू जीवा तिण्णा मसारसागर ॥ १ ॥ एगओ विरई कुज्जा, एगओ य पवनण। असं जमे नियत्ति च, संजमे य पवत्तण ।। २ ।। रागदासे य दो पावे, पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्खू रूभई निच्च, से न अच्छइ म डले ।। ३ ॥
SR No.022569
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
PublisherPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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