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________________ उत्तराभ्ययनसूत्रम् (अध्ययन २२) ८७ अह सारही तओ भणइ, एए भद्दा उ पाणिणो । तुझ विवाहकन्जंमि, भायावेउ बहु जणं ॥ १७ ॥ सेोऊण तस्स वयण, बहुपाणिविणासणं । चिंतेइ से महापन्नो, साणुकोंसो जिए हिओ ॥ १८ ॥ जइ म झ कारणा एए, हम्मति सुबहू जिया । न मे एयं तु निस्सेस, परलोगे भविस्सई ॥ १९ ॥ सो कुडलाण जुयल, सुत्तगं च महायसे । । आभरणाणि य सव्वाणि, सारहिस्स पणामए । २० ।। मणपरिणामे य कए, देवा य जहाइयं समोइण्णा । सम्बढिइ सपरिसा. निक्खमणं तस्स काउंजे ॥ २१ ॥ देवमणुस्सपरिवुडो, सीयारयणं तओ समरूढा । निक्समिय बारगाओ, रेयययंमि ढिओ भगवं ॥ २२ ॥ उजाणं संपत्ता, ओइण्णा उत्तमाउ सीयाओ । साहस्सीइ परिवुडो, अह निक्खमई उ चित्ताहिं ॥ २३ ॥ अह से सुगंधगांधिए. तुरियौं मउकुचिए । सयमेव लुचई केसे, पंचमुट्ठीहिं समाहिओ ॥ २४ ।। वासुदेवो य ण भणइ, लुत्तकेसं जिइंदियं । इच्छियमणारहं तुरियं. पावसू तं दमीसरा ॥ २५ ॥ नाणेण द सणेणं य, चरित्तेण तहेव य ।। खंतीए मुत्तीए, वड्ढमाणा भवाहि या ॥ २६ ॥ एवं ते रामकेसवा, दसारा बहू जणा । अरिद्रणेमि वंदित्ता, अभिगया बारगापुरि ॥ २७ ॥ .
SR No.022569
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
PublisherPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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