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________________ 134 नायाधम्मकहाओ [XI.56॥ एकारसमं अज्झयणं ॥ (96) जइ णं भंते ! समणेणं दसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते एक्कारसमस्स के अहे पन्नत्ते ? एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं २ रायगिहे जाव गोयमे एवं वयासी- केहं णं भंते ! जीवा आराहगा वा विराहगा वा भवंति ? गोयमा ! से जहानामए एगसि समुहकूलंसि दावहवा नामं रुक्खा पन्नत्ता किण्हा जाव निउरंबभूया पत्तिया पुफिया फलिया हरियगरेरिजमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा २ चिट्ठति। जया गं दीविच्चगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति तयाणं बहवे दावदवा रुक्खा पत्तिया जाव चिट्ठति । अप्पेगइया दावहवा रुक्खा जुण्णा झोडा परिसडियपंडुपत्तपुप्फफला सुक्करुक्खओ विव मिलायमाणा २ चिट्ठति । एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा २ जाव पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं ४ सम्म सहइ जाव अहियासेइ बहूणं अन्नउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहइ जाव नो अहियासेइ एस णं मए पुरिसे देसविराहए पन्नत्ते समणाउसो ! जया णं सामुद्दगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति तया णं बहवे दावहवा रुक्खा जुण्णा झोडा जाव मिलायमाणा २ चिट्ठति । अप्पेगइया दावदवा रुक्खा पत्तिया पुफिया जाव उवसोभेमाणा २ चिट्ठति । एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा २ जाव पव्वइए समाणे बहूणं अन्नउत्थियगिहत्थाणं सम्मं सहइ बहूणं समणाणं ४ नो सम्मं सहइ एस णं भए पुरिसे देसाराहए पन्नत्ते समणाउसो! जया णं नो दीविश्चगा नो सामुद्दगा ईसिं पच्छावाया जाव महावाया वायंति तया णं सव्वे दावहवा रुक्खा जुण्णा झोडा । एवामेव समणाउसो ! जाव पवइए समाणे बहूणं समणाणं ४ बहूणं अन्नउत्थियनिहत्थाणं नो सम्मं सहइ एस णं मए पुरिसे सव्वविराहए पन्नत्ते समणाउसो । जया णं दीविच्चगा वि सामुहगा वि ईसिं जाव वायंति तया णं सव्वे दावहवा पत्तिया जाव चिट्ठति । एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं पम्बइए समाणे बहूणं समणाणं ४ बहूणं अन्नउत्थियगिहत्थाणं सम्म सहइ एस णं मए
SR No.022565
Book TitleNayadhamma Kahao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN V Vaidya
PublisherN V Vaidya
Publication Year1940
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size20 MB
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