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________________ [ ५५ ] नयाभास जो नय किंवा अपेक्षा दूसरे नय अथवा अपेक्षा का निषेध करे; तथा अमुक अपेक्षा सच्ची और शेष सभी खोटी है, ऐसा कहता है, उसे पण्डित लोग नयाभास कहते हैं--"दुर्नय" कहते हैं। 'स्थाद्वाद' के प्रति गलत-फहमी का खुलासा बहुत से प्रसिद्ध विद्वान भी "स्याद्वाद" सिद्धान्त के सत् और असत् को प्लेटो आदि सद्-असद् के सिद्धान्त के साथ तुलना करके "स्यात्" का अर्ध सद्-असद् को “सद्-असद्' का मिश्रण गिनते हैं । वे कहते हैं कि “स्याद्वाद" अर्द्ध सत्य की ओर हमें ले जाता है। परन्तु यह अभिप्राय सत्य से दूरहो जाता है। इसमें "लैला और मजनू" का उदाहरण देकर प्रेम दृष्टि से नैसर्गिक प्रेम और वृद्धों की दृष्टि से उन्माद का प्रेम, उसमें समावेश करते हैं। यह सब स्याद्वाद के सिद्धान्त के अज्ञानता का सूचक है। उसके लिये निम्नलिखित उद्देश्य विशेष उपयोगी होगा। "अतः ‘स्याद्वाद' हमें केवल जैसे अद्ध सत्य को ही पूर्ण सत्य मानने के लिये बाध्य नहीं करता, किन्तु वह सत्य का दर्शन करने के लिये अनेक मार्गों की खोज करता है।" । ___ * "स्याद्वाद का इतना ही कहना है कि मनुष्य की शक्ति सीमित है। अत: उस अपेक्षित सत्य को प्राप्त करना चाहिये। अपेक्षित सत्य के जानने के बाद हम पूर्ण-सत्य केवल ज्ञान के साक्षातकार करने का अधिकारी होते हैं।" इस पर से यह समझा जा सकता है कि 'स्याद्वाद' का सत्-असत् यह सत्-असत् का (स्याद्वाद मञ्जरी पृ०.२६ से)
SR No.022554
Book TitleSyadvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
PublisherShankarlal Dahyabhai Kapadia
Publication Year1955
Total Pages108
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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