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________________ [ ४६ ॥ तथा परलोक को सार्थक बनाने का उत्तम मार्ग है। इसके लिए महोपाध्याय श्री यशोविजय जी महाराज ने कहा है कि निश्चय दृष्टि चित्त धरी जी, पाले जो व्यवहार । पुण्यवन्त ते पामशे जी, भव-समुद्र नो पार ।" । अर्थात निश्चय दृष्टि को मन में धारण करके जो व्यवहार का पालन करेगा वह भाग्यशाली विशाल समुद्र से पार उतरेगा। अंग्रेजी में कहा है कि, "Ask your conscience, and then do it." यानी तू अपनी आत्मा को पहले पूछ तथा बाद में हरेक कार्य कर । आत्मा ही मनुष्य का सच्चा मित्र है। वही सच्ची सलाह देता है। इसीलिये कहा जाता है कि अन्तरास्मा की आवाज सुनकर ही कोई कार्य करो। ___ स्याद्वाद दृष्टि, यह निश्चय दृष्टि है । तथा जैसा कि ऊपर कहा गया है कि सभी व्यवहारिक कार्य निश्चय दृष्टि को सामने रख कर करना चाहिए। इस प्रकार स्याद्वाद दृष्टि जगत के जीवों का कल्याण करने के लिये उत्कृष्ट मार्ग है। व्यापार व्यापार में भी देखा जाय तो उसमें भी एकान्त दृष्टि का त्याग कर हमें अनेकान्त दृष्टि का प्राश्रय लेना पड़ेगा। हम लोगों में अभी भी कुछ ऐसे प्राचीन रूढ़ीवाद के पुजारी हैं जो कि मानते हैं कि हमारे बाप-दादे जो व्यापार करते आये है वही हम भी करेंगे तथा उसी को करना चाहिये । मान लीजिये कि हमारे उस पुराने व्यापार में मिहनत और पूजी के प्रमाण में यदि उचित लाभ नहीं होता है और उस धन्धे में खास कोई फायदा
SR No.022554
Book TitleSyadvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
PublisherShankarlal Dahyabhai Kapadia
Publication Year1955
Total Pages108
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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