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शोकोद्गार
इस पुस्तक के मूल लेखक मेरे पूज्य पिता जी श्री शंकरलाल डाह्या भाई ने 'पूज्यपाद मुनिराज श्री विद्याविजय जी की प्रेरणा से इसका हिन्दी अनुवाद कराना और छपवाने का निर्णय किया, बम्बई में यह कार्य होना कठिन था इसलिये स्वर्गस्थ गुरुदेव आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज की अनुमति से यह कार्य सम्पन्न करने के लिये पूज्यपाद मुनिराज श्री विद्याविजय जी को ही प्रार्थना की और उन्होंने मेरे पिताजी की प्रार्थना को स्वीकार किया। काम प्रारम्भ हुआ
और अकस्मात् मेरे पिता जी का स्वर्गवास हुआ। मेरे शिर पर चिन्ता का पहाड़ टूट पड़ा अभी मेरा दिल कुछ हलका ही न हो पाया था कि एकाएक पूज्य पाद गुरुदेव श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज भी स्वर्गवासी हुये, अव मेरे दुःख का वर्णन मैं क्या कर सकता हूँ अब तो गुरुदेव के शिष्यों और मेरे पिताजी के मित्रों एवं श्रीमान् सेठ खीमचन्द भाई छेड़ा आदि से मेरी यही प्रार्थना है कि वे इस पुस्तक सम्बन्धी मेरे पिताजी की भावना को पूरी कराने का कष्ट कर और मेरी चिन्ता हलकी करें।
मनुभाई शङ्करलाल कापडीया