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________________ [ = ] समय क्रोध नहीं करते हुये शांत चित्त से उसके दृष्टिकोण को देखने का यत्न करना चाहिये। जिससे सत्य वस्तु स्वतः मालूम हो जावेगी । इतना ही नहीं, सामने वाले के साथ समन्वय भी सिद्ध होगा । स्याद्वादी कभी भी अपनी धीरता को नहीं खोता है । किन्तु बुद्धिगम्य रीति से सामने वाले का दृष्टिबिन्दु सोचता है तथा इसके पश्चात् ही वह, उस वस्तु का निर्णय करता है । स्याद्वाद और न्यायाधीश दोनों एक समान माने जा सकते हैं। जैसे न्यायाधीश वादी तथा प्रतिवादी के बयान सुनकर दोनों के दृष्टिकोण को समझने के बाद केस (मामले) का फैसला देता है। उसी प्रकार स्याद्वादी भी विरोधियों के दृष्टिकोण को देखकर उसमें से तत्व निकाल कर वस्तु स्थिति का निर्णय करता है । साथ ही समन्वय भी करता है । जिससे न्यायधीश से भी स्याद्वादी एक कदम आगे बढ़ता है । अतः इसी हेतु छः अन्ध और एक हाथी का उदाहरण अनुपम है जो इसके साथ दिया गया है । बात यह है कि किसी समय छः अंधे एक हाथी के पास गये। उनमें जिसके हाथ में हाथी का पैर आया उसने कहा, हाथी खम्भा के समान होता है। जिसके हाथ में कान आया उसने कहा, हाथी सूप के जैसा होता है। जिसके हाथ में सूढ आया, उसने उसे मूसल का रूप दिया । जिसने पेट पर हाथ फेरा उसने कहा, हाथी मशक का सा होता है। जिसके हाथ में दांत आया, उसने कहा, हाथी धनुषाकार होता है और जिसके हाथ में पूछ आई उसने हाथी को रस्सी के आकार जैसा कहा । परिणामतः सभी लोग आपस में झगड़ा करने लगे । उस समय उनके पास एक देखनेवाला आया । उसने सभी को वादविवाद करते हुए देख कहा कि, आप लोग झगड़ा न करें । आप
SR No.022554
Book TitleSyadvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
PublisherShankarlal Dahyabhai Kapadia
Publication Year1955
Total Pages108
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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