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________________ [ २ ] अनुवाद कराया गया है । इसी तरह परम पूज्य विद्वद्वर्य मुनि महाराज श्री विद्याविजय जी महाराज ने इसका हिन्दी अनुवाद कराने तथा इसको छपाने की कृपा की है। इसके लिये मैं उपयुक्त दोनों पूज्यों का आभार मानता हूँ। ___ कलिकल्पतरु, पंजाब केसरी, आचार्य देवेश श्रीमद् विजयबल्लभ सूरि ने अपने प्रशस्य शिष्यरत्न मुनि महाराज श्री जनक विजय जी को स्वयं अपने पास बिठा कर इसको अक्षरशः पढ़ाया और सुनने के बाद समय परत्व रा. रा. श्रीयुत खीमजी भाई. छेड़ा ज्वेलरी भाई वाले को उनके द्वारा पूज्य श्री समुद्रविजय जी को आचार्य पदवी प्रदान करने के समय दी गई रकम में से इस पुस्तक का हिन्दी करा देने का आदेश दिया और इस गुरुभक्त ने भी उनकी आज्ञा को शिरसा वन्दन कर स्वीकार किया और इसका हिन्दी अनुवाद छपवा दिया उसके लिये मैं पूज्य आचार्य देवेश श्रीमद् विजयबल्लभ सूरि जी का तथा रा. रा. खीमचन्द्र भाई छेड़ा का आभारी हूँ। ॐशान्ति ता० ७-३-५३ निवेदक:१६५, बाजार गेट स्ट्रीट शङ्करलाल डाह्याभाई कापडीया कोट, बम्बई नं० १ . )
SR No.022554
Book TitleSyadvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
PublisherShankarlal Dahyabhai Kapadia
Publication Year1955
Total Pages108
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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