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________________ ७३ ९।१ । श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ज्ञानावरणे प्रज्ञाऽज्ञाने॥१३॥ दर्शन मोहान्तराययोर + दर्शनाला + भौ॥१४॥ चारित्रमोहेनान्यारति स्त्री निषद्याऽऽक्रोश याचना सत्कार-पुरस्काराः॥१५॥ वेदनीये शेषाः॥१६॥ एकादयो भाज्या युगपदेकोनविंशतेः॥१७॥ * हिन्दी पद्यानुवाद * मार्ग से अच्यवन होना, निर्जरा हो कर्म से, इस हेतु ही सहिष्णु हो, सह परीषहों को मर्म से। क्षुधा, पिपासा शीत उष्ण, देशमशक परीषह, नग्नता अरति स्त्रचर्या, मुनि सदा सहता वह॥ निषद्या, शय्या पुनः आक्रोश वध अरु याचना, अलाभ, रोग स्पर्श तृणका, मलिनता अरु मानना। प्रज्ञा तथा अज्ञान अदर्शन, है सभी संख्या कही। ये योग में बाइस है, जो सहे मुनि है वही॥ संपराय सूक्ष्म दशवे, गुण के धारक हैं मुनि, छद्मस्थधारी वीतरागी, सहते सभी ये हैं मुनि। जिन विषय में ज्ञात ग्यारह, सभी नवगुण स्थान में, प्रज्ञा तथा अज्ञान ये दो, प्रथम कर्म ज्ञान में ॥ दर्शन मोहनीय उदिते, शुद्ध दर्शन ना रहे, अन्तराय प्रभाव से ही, लाभ कोई ना रहे। चारित्र मोह हेतु से अरतिस्त्री निषद्या सभी, आक्रोश याञ्चा मानना ये सात परीषह सभी॥ वेदनीय में शेष सारे परीषहों को जानिये, एक साथ उन्नीस परिषह, उदित होते जानिये। परिषहों का यह विवेचन, है विवेकगुण स्थान में। फिर कर्म योग संपरिषहों की वर्णना है सूत्र में॥
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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