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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
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एतेषा माधारेष्वेवार्तध्यानस्यप्रकारचतुष्टयं कथितम् - १. अनिष्टसंयोगार्तध्यानम् २. इष्टवियोगार्तध्यानम् ३. शारीरिक-मानसिक रोगचिन्तार्तध्यानम् ४. तीव्रसंकल्पनिदानार्तध्यानम् च।
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* सूत्रार्थ - वह (आर्तध्यान) अविरत, देशविरत और प्रमत्तसंयत- इन गुणस्थानों में ही सम्भाव्य है।
* विवेचनामृतम् *
चारों आर्तध्यानों के अधिकारियों को बताने के लिए इस सूत्र की रचना की गई है। इस सूत्र में चौथे, पांचवे तथा छठे गुणस्थान वर्ती जीवों का उल्लेख है।
आर्तध्यान - अविरत, देशविरत और अप्रमत्तसंयत- इन गुणस्थानों में ही सम्भव है।
* रोद्रध्यानम्
5 मूल सूत्रम् -
हिंसाऽनृतस्य विषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रभविरतदेशविरतयोः ॥३७॥ सुबोधिका टीका
हिंसेति । हिंसा -असत्य - चौर्य-विषयसंरक्षणार्थं सततं या चिन्ता प्रवर्तते तदेव रौद्रध्यानमुच्यते, यच्चाविरतदेशविरतयोरेव सम्भवति।
पंचम गुणस्थानादुपरितनानां जीवानां कृते रौद्रध्यानं न भवति । यस्य चित्ते क्रूरता कठोरता भवति स रुद्रः कथ्यते । रुद्रस्य ध्यानं रौद्रध्यानमुच्यते । हिंसया, मिथ्याभाषणेन, चौर्येण, विषय संरक्षणलिप्सया चिन्ता भवति सैव हिंसानुबन्धि- अमृतानुबन्धि रौद्रध्यानम् अस्ति।
* सूत्रार्थ - हिंसा, असत्य, चोरी और विषय संरक्षण के लिए सतत चिन्ता करना देशविरत में संभव है।
* विवेचनामृतम् *
हिंसाकर्म के लिए, मिथ्या भाषण के लिए चौर्यकर्म के लिए एवं विषय संरक्षण पांचो इन्द्रियों के विषय संरक्षण या पुष्टि के लिए जो बारम्बार चित्त लगाया जाता है, उसे रौद्रध्यान कहते है। यह ध्यान अविरत और देशविरत को ही हुआ करता है।
पांचवें गुणस्थान के उमर के जीवों को रौद्रध्यान नहीं हुआ करता । यहाँ रौद्रध्यान के भेद तथा उसके अधिकारियों का वर्णन है । रौद्रध्यान के चार भेद उसके कारणों के आधार पर आर्तध्यान की तरह ही बताए गए हैं। जिसका चित्त क्रूरता, कठोरता से युक्त होता है, उसे रुद्र कहते हैं। रुद्र ( क्रूरता युक्त जीवात्मा) के ध्यान को रौद्रध्यान कहते हैं।