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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे प्रश्न - जीव की स्वाभाविक गति यदि ऊर्ध्वगति ही है तो वह कर्ममुक्त होकर भी लोकान्त तक
ही ऊर्ध्वगति करके क्यों ठहर जाता है, आगे गति क्यों नहीं करता है? उत्तर - वस्तुत: जीव की ऊर्ध्वगति, स्वाभाविक है। तदनुसार ही वह सकल कर्मक्षय के पश्चात्
ऊर्ध्वगति करता हआ लोकान्त तक पहुँचता है। प्रश्न उठता है कि वह आगे ऊर्ध्वगति क्यों करता है? समाधान-कार्य की सिद्धि सदैव निमित्त कारण पर आश्रित होती है। इसी सिद्धान्त के अनुसार यहाँ तक गमन करने में सहायक बाह्यनिमित्त कारण-धर्मास्तिकाय हैं। लोकान्त तक ही धर्मास्तिकाय का सद्भाव है। आगे अलोक में गति सहायक धर्मास्तिकाय के नहीं होने के कारण सिध्यमान जीव लोकान्त तक अर्ध्वगति करके ठहर जाता है। जिस प्रकार जल में डूबा हुआ तुम्बा, मिट्टी का लेप घुल जाने से जल के ऊमरी सिरे पर आकर टिकता है। वह उपग्राहक जल के अभाव में, जल के ऊपरी भाग से अधिक उमर नहीं जा सकता है। उसी प्रकार अलोक में गति सहायक धर्मास्तिकाय के न होने पर विमुक्त जीव, लोकान्त तक पहुँच कर स्थिर हो जाता है ॥६॥