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१०।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ८५ * विवेचनामृतम् * औपशमिक-आदि भावों के अभाव से मुक्ति प्राप्ति होती है। उसका निर्दश करने के अभिप्राय से नूतन सूत्र- औपशमिक का अवतरण करते हुए उमास्वाती कहते हैं कि-औपशमिकक्षायिक-क्षायोपशमिक औदायिक पारिणामिक भावों तथा भव्यत्व के अभाव से भी मोक्ष-प्राप्ति होती
केवल (क्षायिक) सम्यक्त्व, केवल ज्ञान, केवल दर्शन और सिद्धत्व के अलावा औपशमिक आदि भावों तथा भव्यत्व के अभाव से मोक्षसिद्ध होता है।
समस्त कर्मों के क्षय से मोक्ष होने से सभी कर्मों का अभाव मोक्ष का कारण है। समस्त कर्मों का क्षय होते हुए जीव में औपशमिक आदि भावों का अभाव होता है। इसके कारण औपशमिकादि भावों का अभाव भी मोक्ष का कारण है। सर्वकर्मों का क्षय होने पर औपशमिक, क्षायोपशमिक,
औदायिक-इन तीन भावों का सर्वथा अभाव होता है। क्योंकि ये तीनों भाव कर्मजन्य हैं। पारिणामिक, भाव में भव्यत्व का अभाव होता है परन्तु अन्य जीवत्वादि रहते हैं। क्षायिक भाव का अभाव नहीं होता है क्योंकि सम्यक्त्व, केवल ज्ञान, केवल दर्शन सिद्धत्व इत्यादि क्षायिक भावों में रहते हैं।
सूत्र में भव्यत्व शब्द का उल्लेख नहीं है, किन्तु आदि शब्द प्रयोग से भव्यत्व रूप पारिणामिक भाव में केवल भव्यत्व भाव की निवृत्ति होती है। शेषजीवत्वादि भावों की निवृत्ति नहीं होती है। इस अभिप्राय को समझने के लिए आदि पद से भव्यत्व का परिगणन तथा बोध नितान्त आवश्यक एवम् अनिवार्य है।
वस्तुत: केवल (क्षायिक) सम्यत्व, केवल ज्ञान केवल दर्शन और सिद्धत्व (ये क्षायिक भाव सिद्ध में निरन्तर होते हैं अत:) दर्शन सप्तम के क्षय होने से केवल ज्ञान, दर्शनावरण के क्षय होने पर सिद्धत्व प्राप्त होता है। एतदतिरिक्त औपशमिकादि भाव और भव्यत्व का अभाव होने से मोक्ष प्राप्त . होता है ॥१०-४॥
सकलकर्मक्षये- औपशमिकादि + भावनानाम + भावान्मोक्षे
सम्प्राप्ते सति जीवस्य का गतिरिति जिज्ञासायामाहॐ सूत्रम् -- तदनन्तर + मूर्ध्वं गच्छत्यालोकान्तात्॥१०-५॥
॥ सुबोधिका टीका तदनन्तरमिति। कृस्नकर्मणः क्षयानन्तरं मुक्तो जीव: ऊर्ध्वगमनं करोति। कियद् दूरमिति