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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ७।२ (१) प्राणातिपात विरमण व्रत-समस्त प्रकार के जीवों की हिंसा का त्याग। यह प्राणातिपात विरमण व्रत है।
(२) मृषावाद विरमण व्रत-समस्त प्रकार के असत्य का त्याग। यह मृषावाद विरमण व्रत है।
(३) प्रदत्तादान विरमण व्रत-समस्त प्रकार की चोरी का त्याग । यह प्रदत्तादान विरमण व्रत है।
(४) मैथुन विरमण व्रत-समस्त प्रकार के मैथुन का (विषयों का) त्याग। यह मैथुन विरमण व्रत है।
(५) समस्त प्रकार के परिग्रह का त्याग। यह परिग्रह विरमण व्रत है । [२] पाँच अणुव्रत
उक्त हिंसादिक पापों से किसी एक अंशमात्र में निवृत्त होना, उसे अणुव्रत कहते हैं ।
उन अणुव्रतों के भी पाँच प्रकार हैं जिनके नाम क्रमशः नीचे प्रमाणे हैं(१) स्थूलप्राणातिपात विरमण व्रत
यह पहला व्रत है। निष्कारण, निरपराध त्रस जीवों की संकल्प पूर्वक की जाने वाली हिंसा का त्याग करना, सो स्थूलप्राणातिपात विरमण व्रत है।
* १. इस व्रत में त्रस और स्थावर इन दो प्रकार के जीवों में से केवल त्रस जीवों की ही हिंसा का त्याग करने में आता है। क्योंकि गृहस्थ-जीवन में स्थावर जीवों की हिंसा का त्याग अशक्य है।
* २. इसमें भी संकल्प से अर्थात् मारने की बुद्धि से, हिंसा का त्याग करने में आता है। अपनी मारने की बुद्धि नहीं होने पर भी खेती तथा रसोई आदि की प्रवृत्ति में अजानते अथवा आकस्मिक कारणों से त्रस जीवों की हिंसा हो जाए तो उस आरम्भजन्य हिंसा का त्याग नहीं होता है।
* ३. इसमें भी फिर निरपराध जीवों की ही हिंसा का त्याग करने में आता है। कारण कि-कोई निर्लज्ज बदमाश व्यक्ति स्त्री की लाज लेते हो, कोई चोर चोरी करने के लिए घर में आए हों, श्वान-कुत्ता करड़ने के लिए आए हों, कोई हिंसक प्राणी अपने पर या अन्य पर हिंसा करने के लिए हमला करते हों, तथा कोई नृपति-राजा इत्यादि हो तो शत्रु के साथ लड़ना पड़े, इत्यादि प्रसंगों में भी अपराधी को यथायोग्य शिक्षा करते हुए अपने से स्थूलहिंसा हो जाती है। अपराध किए हुए अपराधी को ताड़ना करनी पड़े या मारना भी पड़े तो इसमें होने वाली हिंसा का त्याग नहीं होता है।
* ४. इसमें भी निष्कारण हिंसा का त्याग है। निरपराध होते हुए भी सकारण प्रमादी ऐसे पुत्रादिक को, बराबर काम नहीं करने वाले नौकर-चाकर इत्यादिक को, तथा उपलक्षण से वृषभ-बैल आदि को भी मारने का प्रसंग पा जाए, तो भी इसका नियम नही है ।