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________________ ( ११४ ) पुत्रार्थ पितरौ कष्ट, सहेते वचनातिपम् । स पुत्रो मातरं तातं, रक्षितु न प्रभुर्भवेत् ॥ ४१ ॥ * अर्थ-पुत्र के लिए माता-पिता अवर्णनीय कष्ट सहते हैं। परन्तु वह पुत्र माता-पिता की रक्षा करने में समर्थ नहीं होता है ।। ४१ ॥ कालः कवलयन् सर्वान्, पश्यतां हि हितैषिणाम् । न कोऽपि कस्यचित् त्राता, यात्यनाथो भवान्तरम् ॥ ४२ ॥ * अर्थ-अपने हितैषी एवं सगे-सम्बन्धियों के देखते-देखते काल सबको खा जाता है, तो संसार में कोई किसी का रक्षक नहीं है। जीव तो अनाथ होकर ही भवान्तर हेतु प्रयाण करता है ॥ ४२ ।। नरनाथाः प्रजा सर्वाः, मुनयश्च महर्षयः । स्तेनाः रङ्काः वराः क्रूराः, ये जातास्ते मृताः ध्र वम् ॥ ४३ ॥ * अर्थ-सारे राजा, प्रजा, मुनि, महर्षि, धनिक, गरीब, सेवक और क्रूर जो भी पैदा हुए, वे सब मृत्यु को प्राप्त हुए ॥ ४३ ।। भूपो नृपोऽपि जीवोऽयं, पङ्कः रङ्कः प्रजायते । रुजा कान्तः सुखी नित्यं, विचित्रा हि भवस्थितिः ॥ ४४ ॥ ® अर्थ-कभी भूपति, कभी नरपति, कभी धनी तो कभी गरीब के रूप में यह जीव उत्पन्न होता है। कभी रोगों से आक्रान्त, तो कभी नित्य सुखी भी रहा है। संसार की स्थिति बहुत विचित्र है ।। ४४ ॥ का योनिः कतरत् स्थानं, का जातिः किं च वा कुलम् । यत्र जीवो न वा जातः, किं दुःखं नैव भुक्तवान् ॥ ४५ ॥ * अर्थ-इस जीव ने किस योनि, किस स्थान, किस जाति एवं किस कुल में जन्म नहीं लिया ? एवं उसने किस दुःख को नहीं भोगा ।। ४५ ।।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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