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________________ ६२ ] 5 मूलसूत्रम् सदसद्वेद्ये ।। ८-९ ।। श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे * भ्रष्ट कर्मप्रकृति का वर्णन * मत्यादीनाम् ॥ ८-७॥ चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां निद्रा निद्रानिद्रा प्रचलाप्रचलाप्रचला - स्त्यानद्ध वेदनीयानि च ॥ ८-८ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद [ हिन्दी पद्यानुवाद - दर्शन - चारित्रमोहनीय कषाय- नोकषायवेदनीयाख्यास्त्रि - द्वि-षोडश - नवभेदाः सम्यक्त्व - मिथ्यात्व तदुभयानि कषाय- नोकषायौ, अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यान- प्रत्याख्यानावरण-संज्वलन - विकल्पाश्चैकशः क्रोध- मान-माया-लोभ-हास्य रत्यरति शोक-भय-जुगुप्साः स्त्री-पु-नपुंसकवेदाः ॥ ८-१० ॥ नारक-तैर्यग्योन - मानुष- देवानि ॥ ८-११ ॥ मतिज्ञानावरण ज्ञानावरणकर्म के हैं, पाँच भेद वरित किये । नाम, प्रथम उसका भेद ये ।। अवधिज्ञानावरण है । मिलके पंचावरण हैं ।। ५ ॥ तदनुश्रुतज्ञानावरण, कारण से अज्ञान है । मनः केवलज्ञान दो ये, इनमें प्रथम तीन के, चक्षुदर्शन चक्षुदर्शन, दो भेद क्रमशः ही अवधि तीसरा तुरीय केवल, चार दर्शन हैं हुए । ये आवरण चारों कहे हैं, पाँच-निद्राभेद के ॥ ६ ॥ हैं ॥ निद्रा सम्बन्धी प्रथम निद्रा, निद्रानिद्रा दूसरा । प्रचला तृतीय भेद होता, प्रचला प्रचला है खरा ॥ स्त्यानगृद्धि भेद पंचम, नव संख्या में गणना करो । कर्म दूसरा भेद नव से, सुनि सत्त्वर परिहरो ।। ७ ।।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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