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________________ ५४ ] श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ८.५ ( ६ ) प्रश्न- गतिशील कर्मस्कन्धों का बन्ध होता है या स्थितिशील कर्मस्कन्धों का बन्ध होता है ? उत्तर - स्थिर कर्मस्वन्धों का बन्ध होता है, गतिशील स्कन्ध अस्थिर होने से उनका बन्ध नहीं होता है । अर्थात् - कार्मण वर्गणा के जो पुद्गल स्थित हैं अर्थात् गति रहित हैं, उन्हीं पुद्गलों का ग्रहण होता है, गतिमान कार्मण वर्गरणा के पुद्गलों का बंध नहीं होता है । यह जानकारी इस सूत्र में रहे हुए स्थिता:' शब्द से मिलती है । ( ७ ) प्रश्न- उन कर्म - स्कन्धों का बन्ध सम्पूर्ण प्रात्मप्रदेशों के साथ होता है ? या न्यूनाधिक श्रात्मप्रदेशों के साथ होता है ? अर्थात् ग्रहरण किये हुए कर्मपुद्गलों का जीव - प्रात्मा के ही अमुक प्रदेशों में सम्बन्ध होता है कि समस्त प्रदेशों में सम्बन्ध होता है ? उत्तर- समस्त आत्मप्रदेशों के साथ बन्ध होता है । करता है । जैसे श्रृंखला की का चलन होते ही सर्व कड़ियों का जब कर्मपुद्गलों का ग्रहण करने ! * जीव सर्व आत्मप्रदेशों द्वारा कर्मपुद्गलों का ग्रहण ( सांकल की ) प्रत्येक कड़ी परस्पर जुड़ी हुई होने से एक कड़ी चलन होता है, वैसे जीव आत्मा के सर्वप्रदेश परस्पर जुड़े होने से के लिए कोई एकप्रदेश व्यापार करता है, तब अन्य सर्वप्रदेश भी व्यापार करते हैं । ग्रहा कितनेक जीवों के प्रदेशों का व्यापार न्यून होता है, कितनेक प्रदेशों का व्यापार न्यूनतर होता है; यो व्यापार में भी तारतम्य अवश्य होता है । उदाहरण रूप जब अपन घट-घड़े को उठाते हैं। तब हाथ के समग्र भागों में व्यापार होते हुए भी हथेली के भाग में व्यापार विशेष होता है, कन्धे के भाग में उससे न्यून - कम व्यापार होता है । उसी भाँति प्रस्तुत में कर्मपुद्गलों को ग्रहण करने का व्यापार सर्व श्रात्मप्रदेशों में होता है किन्तु व्यापार में तरतमता अवश्य होती है । प्रत्येक प्रात्मप्रदेश में कर्मग्रहण का व्यापार होने से सर्व श्रात्मप्रदेशों में आठों ही कर्मों के प्रदेश सम्बद्ध होते हैं । इस प्रकार की जानकारी सूत्र में रहे हुए 'सर्वात्मप्रदेशेषु' इस पद से मिलती है । ( ८ ) प्रश्न – कर्मस्कन्धों के प्रदेश संख्याते, असंख्याते या अनन्त होते हैं ? * एक बार में कितने प्रदेशों वाले स्कन्धों का बन्ध होता है ? उत्तर - कर्मयोग्य स्कन्ध के पुद्गल "परमाणु" नियम से अनन्तानन्त प्रदेशी होते हैं । संख्यात, असंख्यात या श्रनन्त परमाणुओं से बने हुए स्कन्ध प्रग्राह्य हैं । स्पष्टीकरण - प्रदेशबन्ध में एक, दो, तीन यों छूटे-छूटे पुद्गल - कर्माणु बन्धाते नहीं हैं, किन्तु स्कन्ध रूप में बन्धाते हैं । उसमें भी एक साथ एक, दो, तीन, चार, यावत् संख्यात अथवा असंख्यात जथ्था बँधाते नहीं हैं, किन्तु अनन्त जथ्था ही बँधाते हैं। तथा एकैक जथ्था में अनन्त कर्माणु होते हैं ।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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