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________________ हिन्दी पद्यानुवाद ] सप्तमोऽध्यायः परविवाहे दोष महान्, परिगृहीता भाव में । अपरिगृहीता स्थान में ही, दोष है परभाव में ।। अनंगक्रीड़ा तीवकामी, दोष पंचक सेवते । तूर्यव्रत है मलिन होते, गुण यश को चूकते ।। १५ ।। क्षेत्र वास्तु रूपा सोना, धन धान्य ही धारणा । दास-दासी धातु हल की, पंच दोष ही वारणा ।। संख्या थकी नहीं दोष सेवे, मिश्र दोषो दाखवे । व्रत पंचम मलिन होने से, श्राद्ध गुण नहीं साचवे ।। १६ ।। * गुणवत तथा शिक्षाव्रत के अतिचार * 卐 मूलसूत्रम् ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रम-क्षेत्रवृद्धि-स्मृत्यन्तर्धानानि ।। ७-२५ ॥ आनयन-प्रेष्यप्रयोग-शब्दरूपानुपात-पुद्गलक्षेपाः ॥ ७-२६ ॥ कन्दर्प-कौत्कुच्य-मौखर्या-समीक्ष्याधिकरणोपभोगाधिकत्वानि ॥ ७-२७ ॥ योगदुष्प्रणिधाना-नादर-स्मृत्यनु-पस्थापनानि ॥ ७-२८ ॥ अप्रत्यवेक्षिताप्रमाजितोत्सर्गादाननिक्षेपसंस्तारोप क्रमणा-नावर-स्मृत्यनु-पस्थापनानि ॥ ७-२६ ॥ सचित्त-संबद्ध-संमिश्रा-भिषव-दुष्पक्वाहाराः ॥ ७-३० ॥ सचित्तनिक्षेप-पिधान-परव्यपदेश-मात्सर्य-कालातिकमाः ॥ ७-३१॥ * हिन्दी पद्यानुवाद ऊर्ध्व व्यतिक्रम अधोव्यतिक्रम, और तीर्थाव्यतिक्रम । धारणा से अधिक बढ़ते, दोष तीनों व्यतिक्रम ।। क्षेत्रवृद्धि दोष चौथा, दिग्विरमण है कहा। स्मृति अन्तर्धान पंचम, दोष पंचक है कहा ॥ १७ ।।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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