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गगापिसभापणास..
४२ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ५।२४ लेने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है, वैसे जो कर्म भी अपना अधिक फल देकर ही अलग होते हैं, उस बन्ध को ही 'निधत्तबन्ध' कहा जाता है ।
(४) निकाचित बन्ध-घरण से कूट करके परस्पर एकमेक बनी हुई सुइयों के समान 'निकाचित बन्ध' कहा जाता है। जैसे ऐसी सुइयों को उपयोग में नहीं ले सकते हैं, किन्तु उसमें से फिर नूतन-नवी सुइयाँ बनाने के लिए विशेष प्रयत्न-मेहनत करनी पड़ती है, वैसे ही ये कर्म अपना पूर्ण फल दिये बिना छूटे-जुदे पड़ते ही नहीं हैं; पूर्ण फल देकर ही अलग होते हैं, ऐसे बन्ध को 'निकाचित बन्ध' कहा
(३) सूक्ष्मता-इसके दो भेद हैं-अन्त्य और प्रापेक्षिक ।
जो परमाणु रूप है वह अन्त्य सूक्ष्म है तथा द्वयणुकादि स्कन्ध हैं वे सापेक्ष सूक्ष्म हैं। अर्थात-परमाण की सक्षमता अन्त्य सक्षमता कही जाती है। इस विश्व-जगत में परमाण से अधिक सूक्ष्म कोई नहीं है। इसलिए परमाणु में रही हुई सूक्ष्मता अत्यन्त अन्तिम ही है। अन्तिम में अन्तिम है।
अन्य वस्तु-पदार्थ की अपेक्षा होती हुई सूक्ष्मता आपेक्षिक सूक्ष्मता है। जैसे--आँवले की अपेक्षा बेर-बोर सूक्ष्म है और ग्राम की अपेक्षा आँवला सूक्ष्म है।
चतुरणुक स्कन्ध की अपेक्षा त्र्यणुक स्कन्ध सूक्ष्म है इत्यादि ।
(४) स्थूलता-इसके भी दो भेद हैं-अन्त्य और प्रापेक्षिक । सम्पूर्ण लोकव्यापी स्कन्ध की जो स्थलता है, वह 'अन्त्य स्थलता' कही जाती है। कारण कि. बडे में बड़ा पदगल द्रव्य लोक समान है जो अचिन्त्य महास्कन्ध सर्वलोकव्यापी है। अलोक में तो किसी भी द्रव्य की गति नहीं होने से लोक के प्रमाण से बड़ा कोई पुद्गल द्रव्य नहीं है।
___ अन्य वस्तु की अपेक्षा होती स्थूलता प्रापेक्षिक स्थूलता है। जैसे-बेर से आँवला और आँवले से आम स्थूल है इत्यादि ।
आपेक्षिक वचन को ही अनेकान्तवाद-स्याद्वाद कहते हैं। एक ही वस्तु में स्थूलत्व और सूक्ष्मत्व सदृश दो विरोधी पर्यायों का अस्तित्व ही अनेकान्तवाद कहलाता है।
(५) संस्थान-यानी आकृति । अवयव रचना विशेष । वह अनेक प्रकार की है। तथापि उसके दो भेद बताये हैं-इत्थंभूत और अनित्थंभूत ।
जिस आकार-प्राकृति की किसी अन्य प्राकार-आकृति के साथ तुलना की जाय उसे 'इत्थंभूत' कहते हैं तथा जिसकी तुलना अन्य किसी के साथ नहीं हो सकती उसे 'अनित्थंभूत' कहते हैं ।
जैसे- मेघ आदि का संस्थान यानी रचना विशेष करके अनित्यरूप होने से किसी भी एक प्रकार से उनका निरूपण नहीं कर सकते हैं, इसलिए वह 'अनित्थंभूत' रूप है तथा फल, फूल-पुष्प, वस्त्र एवं पत्रादि वस्तुएँ इत्थंभूत रूप हैं। कारण कि, इनका आकार गोल, त्रिकोण, चतुष्कोण, इत्यादि तुलनात्मक अनेक प्रकार का है।