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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
विवेचनामृत 5
गतिमान पदार्थों की गति में और स्थितिमान पदार्थों की स्थिति में उपग्रह करना, निमित्त बनना, सहयोग करना क्रमशः धर्मास्तिकाय द्रव्य का तथा अधर्मास्तिकाय द्रव्य का उपकार है ।
[ ५।१७
उपग्रह, निमित्त अपेक्षा, कारण और हेतु ये पर्याय हैं । अर्थात् – यहाँ उपग्रह का अर्थ निमित्तकारण है तथा उपकार का अर्थ कार्य है । जीव और पुद्गलों में गति और स्थिति करने का स्वभाव है ।
जब जीव और पुद्गल गति करते हैं तब धर्मास्तिकाय द्रव्य गति में उनकी सहायता करता है तथा स्थिति करते हैं तब अधर्मास्तिकाय द्रव्य स्थिति में उनकी सहायता करता है । जीव- पुद्गल गतिस्थिति में सहायता करनी यही क्रमशः धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय का कार्य है ।
जैसे - मत्स्य - मछली में चलने की और स्थिर रहने की शक्ति होते हुए भी उसको चलने में जल - पानी की और स्थिर रहने में बेट तथा जमीन आदि किसी अन्य पदार्थ की सहायता की अपेक्षा रहती है, नेत्र चक्षु में देखने की शक्ति होते हुए भी उसे प्रकाश की अपेक्षा रहती है, वैसे जीव- श्रात्मा को तथा पुद्गल को गति और स्थिति करने में क्रमश: धर्मास्तिकाय तथा अधर्मास्तिकाय की सहायता लेनी ही पड़ती है। कारण कि धर्मास्तिकाय बिना गति नहीं हो सकती है और अधर्मास्तिकाय बिना स्थिति नहीं हो सकती है ।
* प्रश्न - जीव आत्मा और पुद्गल की गति और स्थिति केवल स्व-शक्ति से होती है । उसमें अन्य कोई कारण मानने की जरूरत नहीं। इसलिए ही नैयायिक तथा वैशेषिकादि दर्शनकार धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय इन दो द्रव्यों को नहीं मानते हैं ?
उत्तर - जो जीव- श्रात्मा और पुद्गल की गति तथा स्थिति केवल स्वशक्ति से होती हो तो लोकाकाश में उनकी गति एवं स्थिति क्यों नहीं होती ? लोकाकाश में ही क्यों होती है ? इसलिये गति स्थिति में स्वशक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई निमित्त कारण अवश्य ही होना चाहिए ।
बाह्य
स्वशक्ति अन्तरंग कारण है । केवल अन्तरंग कारण से कार्य नहीं होता । अन्तरंग तथा ये दोनों कारण मिलें तो ही कार्य होता है । जैसे- पक्षी में उड़ने की शक्ति है, किन्तु पंखों के पवन हवा न हो तो वह पक्षी नहीं उड़ सकता वैसे ही जीव और पुद्गल में गति स्थिति करने की शक्ति होते हुए भी जो बाह्य कारण धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय न हो तो गति स्थिति न हो सके। इसलिए जीव और पुद्गल की गति के कारण तरीके धर्मास्तिकाय की तथा स्थिति के कारण तरीके अधर्मास्तिकाय की सिद्धि होती है ।
* प्रश्न - जीव- प्रात्मा और पुद्गल की गति तथा स्थिति के बाह्य कारण तरीके आकाश को मानने से गति और स्थिति हो सकती है। जैसे – जल पानी, मत्स्य- मछली का आधार होते हुए भी तदुपरान्त गति स्थिति में भी कारण बनता है, वैसे प्रकाश को ही जीव- पुद्गल के आधार रूप में तथा गति स्थिति के कारण तरीके मानने से इष्ट की सिद्धि हो जाती है । अधर्मास्तिकाय को मानने की जरूरत नहीं ?
अतः धर्मास्तिकाय और